नाटक(Theatre) पर अलग-अलग समय पर इस ब्लॉग पर अपने विचार रखता रहा हूँ। सभी लेख इस ब्लॉग पर बिखरे पड़े थे, पाठकों की सुविधा के लिए मैंने उन्हें एक जगह पर सूचीबद्ध किया है। नीचे सूची में लेखों के शीर्षक दिए हैं। उन शीर्षकों पर क्लिक करने पर संबन्धित लेख खुल जाएगा।
- सामूहिक अचेतन में धँसी टुकड़ा-टुकड़ा तस्वीरों को नाटक ही जोड़कर बाहर ला सकता है।
- नुक्कड़ नाटक : होश में कब तक आएंगे ?
- दूसरे के जूते में पैर रख के देखो
- अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस : आओ, लोगों को नाटक का चस्का लगाएँ
- ग्रीष्म नाट्य उत्सव 2017 : उसके इंतज़ार में उर्फ आखिर तक सुर बदल गया
- द मैरिज प्रोपोज़ल : अरण्य में कहकहे तलाशता एक हास्य
- अलवर की एक शाम किस्सागोई के नाम - दलीप वैरागी
- गुड्डी गायब है उर्फ जनता ऊँचा सुनती है
- “ भूलेंगे तो तब न, जब हम उसे रटेंगे!”
- नाटक केवल प्रॉडक्ट नहीं होता
- अलवर रंग महोत्सव: एक खूबसूरत नाट्यानुभव
- अभिव्यक्ति अपना व्याकरण खुद रच लेती है।
- हास्य नाट्य समारोह के ठहाकों की गूंज अलवर की फिज़ाओं में कई दिन तक रहेगी
- मोहन से महात्मा और नाटक
- एक अमेच्योर एक्टर की डायरी - 1 : रटें या रमें
- कहानी कोई भी मोड़ ले सकती है
- नाटक को पाठशाला से प्रेक्षागृह में निर्देशक बदलता है
- लघु नाटिका - सब कुछ सड़क पर...
- नाम में मिला होता है अपमान का घूंट
- एकल नाटक : उत्तर कामायनी
- स्थगित नाटक उर्फ गुमशुदा सवाल है
- शो मस्ट गो ऑन
- थियेटर एक्सर्साइज़ : ग्रुप डायनामिक्स 1
- थिएटर एक्सर्साइज़ ( Theatre Exercise) : Mime and movement - 1
- थियेटर एक्सर्साइज़ (Theatre exercise-2) : स्थायी पता
- रंगमंचीय गतिविधियां एवं अभ्यास (Theatre exercises) -1 : (Image) इमेज
- विश्व रंगमंच दिवस : समस्याओं से जूझता अलवर का रंगमंच
- नाटक और रटना
- नाटक, संभावनाओं का मंच (भाग - 1) : खामोश नाटक जारी है
- नाटक संभावनाओं का मंच (भाग 2) : नाटक क्या करता है
- नाटक संभावनाओं का मंच (भाग-3) : धीरे-धीरे आइसबर्ग का बाहर आना
- नाटक संभावनाओं का मंच ( भाग 4 )
- नाटक संभावनाओं का मंच ( भाग 5 ) : भरत वाक्य
- थियेटर ( Theatre) : फ़र्क तो पड़ता है
- थिएटर ज़िंदगी के लिए उतना ही ज़रूरी है जितना मॉर्निंग वॉक या वर्जिश
- अंकुरजी उवाच : रगमंच जैसी विधा पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती।
- रंगमंच (Theatre) : वंचित वर्ग की शिक्षा का माध्यम को हमेशा हाशिये पर रखा गया है।
- बच्चों का रंगमंच: कहीं भी, कभी भी ...
- Theatre : सच को साधने का यन्त्र
- नाटक, स्कूली बच्चे और हम !
- थियेटर, अभिनेता और दर्शक के बीच लेनदेन भर है... न कम न ज्यादा।
- एक्टर बनने की पहली शर्त इंसान होना है
- Theatre : सच को साधने का यन्त्र
9928986983
(कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो शेयर ज़रूर करें। इससे इन्टरनेट पर हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा तथा मेरी नाट्यकला व लेखन को प्रोत्साहन मिलेगा। )
एक एक शीर्षक में एक नया जीवन, नया अनुभव और एक नई सीख है।
ReplyDelete