बच्चों के साथ एक नाट्यानुभव
शूज शफल” एक ड्रामा तकनीक है, इसे जितनी बार बच्चों के साथ करो इसकी उतनी
ही संभावनाएं खुल कर सामने आती हैं। करना कुछ नहीं, एक वस्तु लीजिए और बच्चों या
अभिनेताओं के बीच रख दीजिए। अब उस वस्तु का प्रयोग करते हुए अभिनय करना है। शर्त
यह है कि वास्तव में जो वस्तु है उसे वह वस्तु न मान कर कोई और वस्तु मानना है।
केजीबीवी में 91 लड़कियां थीं। सभी को इस गतिविधि में शामिल करना ही था। निकटतम उपलब्ध
वस्तु, एक
थाली जो हॉस्टल में सहज ही उपलब्ध थी वह लड़कियों के घेरे के बीच में रखी गई। अब
लड़कियों को बुलाया गया। यह क्या! कोई भी लड़की उठ कर नहीं आई। क्या बात है...
गतिविधि प्रासंगिक नहीं है ... या ... मैं बता ही नहीं पाया ... एक बार फिर बताया
गया ... बात जस की तस... अब खोट सामने वाले में देखने की बारी थी। शायद लड़कियों
में झिझक बहुत है। क्यों न एक बार फिर अपने सम्प्रेषण को परखा और सीमाओं को देखा
जाए, कई बार शाब्दिक सम्प्रेषण काफी
नहीं होते। मैंने सभी लड़कियों को कहा कि इस गतिविधि को करने में पहला नंबर मेरा
है। मैंने सामने पड़ी थाली को उठाया और उसे आईने की तरह सामने रख कर अपने बाल
सँवारने का कार्य किया। मेरे बैठने से पूर्व एक लड़की खड़ी हो चुकी थी। उसने आरती की
थाली बना दी। दूसरी लड़की ने भी पूजा जैसी कोई थाली बनाई। उससे कहा गया कि आप एक ही
कार्य को दोहरा नहीं सकते। लड़की ने कहा कि यह अलग है, मैं यह थाली लेकर राखी बांध रही
हूँ। एक लड़की आयी उसने थाली को थालीपने से सम्पूर्ण मुक्ति देते हुए बारिश में
छाते की तरह औढ लिया। एक और लड़की ने उसे रोटी बेलने का चकला बना दिया। एक ने बैठने
कि चौकी बना दी। एक ने कचरादान बनाया, एक ने फावड़ा, एक ने सुदर्शन चक्र... लैपटाप ...
ढपली.... स्कूल की घंटी... कंघा... पंखा... कॉपी ... किताब... पर्स... बैग ...
गिनती 91 तक जाती है... इस बीच नैनी, जो अभी पढ़ना लिखना सीख रही है, जिसके बारे में कहा जाता है कि
शिक्षण प्रक्रियाओं में नहीं जुड़ पाती, वह अब तक तीन बार आ चुकी है और हर बार उसके उत्साह
में गुणोत्तर वृद्धि हो रही है। कल्पना व सृजनशीलता की ऊष्मा से पिघल कर थाली
तरलता में रूपांतरित हो चुकी थी और मन चाहे नाना आकारों में ढलने लगी थी। अब लड़कियों को बुलाना नहीं पड़ रहा वे आ रही
हैं... इससे पहले कि यह आइडिया तरलता से गैस में तब्दील होकर हवा हो जाए इसमें
वैरिएशन (बदलाव) जरूरी है।
विचारों के मशरूम
मैंने बदलाव के आशय से लड़कियों से कहा कि यह गतिविधि तो बहुत सरल हो गई है। अब
मैं इसे थोड़ा कठिन कर देता हूँ। चार-पाँच लड़कियों ने कहा जरूर कर दीजिए लेकिन एक–एक
बार पहले इसे हमे पूरा करने दो। थोड़ी देर बाद मैंने थाली के पास ही एक छोटा बक्सा
रख दिया,
जो वहीं क्लासरूम में रखा हुआ था। थोड़ा सा विराम आया। कल्पना का विमान अब वैचारिक
धरातल पर उतर चुका था। अब तक लड़कियां वस्तु को उसके आकार के अनुसार कल्पना के रंग दे
रहीं थीं। अब वे दोनों वस्तुओं के अंतर्संबंध को देख रहीं थीं। उस वस्तु के आकार
उपयोगिता व गुणधर्म आधार पर... फिर उसके साथ अपने शरीर को भी ढाल रही थीं। एक लड़की
ने बक्से को लैपटाप बनाया तथा पास में रखी थाली से कुछ ले कर खाती भी जा रही है।
एक लड़की ने बक्से को पूजा की वेदी बनाया तथा सामने पूजा की थाली रखी। अब थाली अपने
मूल रूप की और लौट रही थी और बक्सा कल्पना के रंगों से रंगा जा रहा था। अब लड़कियों
ने कहा कि आपने गतिविधि को कठिन करने की बजाए और सरल कर दिया। अब मैंने एक वस्तु
कपड़ा भी रख दिया। मैंने कहा अब चाहें तो दो लड़कियां साथ मिल कर भी आ सकती हैं। चंद
क्षण में ही लड़कियों के हाथ जुड़ कर जोड़ियाँ बनने लगीं। एक लड़की ने बक्से पर कपड़ा
बिछाया,
उस पर दूसरी को बैठा दिया तथा थाली में उसके पैर रख कर, पैरों को धोने का उपक्रम करने
लगी। एक जोड़ी आई उसने बक्से व कपड़े की स्थिति में बदलाव किए बिना अपने साथी को उस
पर बैठाया तथा थाली में से कुछ उठा कर बालों में मेहँदी लगाने का अभिनय किया... एक
जोड़ी,
भी वैसे ही लड़की को बक्से पर बैठाया, बैठी हुई लड़की के हाथ में थाली को आईने की तरह थमाया
और उसकी चोटी बनाने का अभिनय करने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि लड़कियां Photomontage तकनीक की विशेषज्ञ हों और मूल
बैकग्राउंड या झांकी के आगे कुछ इन्स्टाल
या रद्दोबदल करके दृश्य को परिवर्तित कर रही हों। लड़कियों की जोड़ियाँ बदस्तूर आ जा
रही थीं मंच पर से। उनके अभ्यासों में कथा तो अभी नहीं आई थी लेकिन एक सूत्र जरूर
आ गया था जो उन्हे व मंच की वस्तुओं को न केवल बांधता था बल्कि पूर्व में लड़कियों
द्वारा बनाए को,
विध्वंस न करने की बजाए उसमे कुछ जोड़ता था। यहाँ नाटक की प्रवृत्ति साफ उभर कर
सामने आ रही थी जो सहज ही व्यक्तियों को एक टीम बनने की और ले जाती है। मेरे पास
बदलाव का और कोई विकल्प नहीं था सिवा इसके कि एक दो वस्तु और व्यक्तियों को जोड़ने
की छूट दे दूँ। मैंने कहा कि इसे और कठिन (आसान ) करने जा रहा हूँ। मैंने अब कोने
में रखी एक झाड़ू उठा कर मंच के बीच रख दी और लड़कियों से कहा कि अब कितनी भी
लड़कियां आ सकती हैं। अब तक यह गतिविधि मूक रखी गई थी अब बोलने की बंदिश भी हटा दी
गई।
दो-दो की टोलियाँ चार-पाँच के दल में संघनित होने लगे। चीज़ें बढ़ी व्यक्ति भी
बढ़े। चीजों व व्यक्तियों की बढ़ोतरी की गर्मी व नमी पाकर विचारों के मशरूम ज़मीन तोड़
कर बाहर आने लगे। विचारों से कथाओं की कोंपले फूटती दिखाई देने लगीं। एक लड़की थाली
को तकिया बना लेती हुई है। दूसरी ने उसको चादर औढ़ा दी है। एक उसे औझा को दिखाने ले
जाती है। औझा झाड़ू से झाड़ फूँक करता है। एक और लड़की आकर उन्हे समझाती है और डॉक्टर
के पास लेकर जाती है। इसी प्रकार और भी टोलियाँ आने लगीं। डॉक्टर उस सन्दूकची में
दवाइयों को लेकर मरीज की जांच करता है। चीजों से विचार तथा विचारों से कथाओं की
कोंपले फूटती दिखाई देने लगीं। शुज शफल की की गतिविधि जहां हमारा प्रस्थान बिन्दु
था वहीं हमें लग रहा था कि बिना कोई बाह्य विचार लड़कियों पर थोपे महज़ चीजों के
सहारे हम उसी मंज़िल तक सहज ही आ गए जहां पहुँचने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है।
यह अहसास होता है कि आमतौर पर हम जिन्हें जड़ वस्तुएँ मानते हैं, दरअसल वे ज़िंदगी की बुनावट साथ
लिए रहती हैं। नाटक में अभिनेता का स्पर्श पाकर ये वस्तुएँ पुनर्नवा की तरह जीवंत
हो उठती हैं। जितनी वस्तुएँ और व्यक्ति बढ़ेंगे वैचारिक सूत्र मूर्त से अमूर्त की बढ़ने
लगते हैं। जिंदगी उतने ही संस्लिष्ट रूप
में नाटक की कथा के रूप में चल निकलती है अपने विराट रूप मे।
थोड़ी ही देर में पूरा समूह छोटी-छोटी टोलियों में ढलता दिखाई दिया। चूंकि
चीजों का सेट एक था तो, पहले मैं, पहले मैं की अराजकता भी आई। एक बदलाव के तौर पर फिर
एक मोड गतिविधि को दिया गया। सभी लड़कियों से कहा गया कि बाहर आँगन में जाएँ और जो
चीज आपको दिखाई दे उसे लेकर आ जाएँ। चीजें इकट्ठी होने पर लड़कियों के समूह बना दिये। सभी समूहों को अपनी लाई चीजों
में से पाँच चीज़ें लेनी है व उनके साथ एक नाटक बना कर लाना है।
समूह
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वस्तुएँ
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विचार
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कथा का परिवेश
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समूह 1.
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कंघा, तेल, बाल्टी, मग, डंडा
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पढ़ाई व दंड
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हॉस्टल व स्कूल जीवन
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समूह 2.
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कॉलगेट, ब्रुश, फोन, किताब, नेल कटर
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पढ़ाई व दंड
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स्कूल मे अफसर का दौरा
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समूह 3
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डंडा, बैग, गिलास, स्टूल, कॉपी
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पढ़ाई, दंड, बाल विवाह
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स्कूल
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समूह 4
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घड़ी, किताब, रंग, दर्पण व पेंसिल बॉक्स
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पढ़ाई
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स्कूल
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समूह 5
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पत्ता, बोतल, झाड़ू, लकड़ी, सोना
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जेंडर भेद, अंधविश्वास
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घर समाज
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समूह 6
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बैग, प्लेट, चाकू, कपड़े, साबुन
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मोलभाव
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सब्जी का ठेला
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समूह 7
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पत्ते, गिलास, फूल, दुपट्टा व झाड़ू
|
अंधविश्वास
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अस्पताल व भोंपा
|
लगभग आधा घंटा काम करने के बाद बच्चे बड़े समूह मे लौट
आए। सबने तैयारी के साथ अपनी प्रस्तुतियाँ दीं। यहाँ भी चीजें दोनों रूपों में
इस्तेमाल हुईं अपने वास्तविक रूढ रूप में
तथा प्रतीकात्मक व काल्पनिक रूप में। परंतु बच्चों के चीजों के साथ काम करने का एक
पैटर्न समझ मे आया कि भले ही चीजों के मामले में हर समूह के पास अलग-अलग चीजें थीं, कथानक व घटनाओं का वैविध्य भी
स्वाभाविक रूप से अपेक्षित था लेकिन उनमें गूँथे हुए विचार लगभग समान ही थे। शायद
बचपन में चीजों से पेश आने में बच्चों में ज्यादा महारत होती है। किसी भी वस्तु से
वे मनचाहा करवा सकते हैं। शायद इसी लिए उन्होने विविधता पूर्ण चीजों के बावजूद
अपनी ज़िंदगी के सबसे निकट के व तल्ख अनुभवों व विचारों को अभिवक्ती दी, जो उनके कॉमन से हैं।
इस गतिविधि में चीजों की मार्फत एक सौद्देश्य शैक्षणिक प्रक्रिया की और हम बढ़
चुके थे। छोटी नाट्य प्रक्रियाओं से घटनाओं, कहानियों से होते हुए बच्चों के
मुद्दों तक पहुँच चुके थे जो उनके सबसे निकट के है। इन्हीं में से किसी एक पर आगे
के दिनों और फोकस्ड होकर काम किया जाना है।
मिला कुंजी वाक्य उर्फ गुड्डी गायब है।
एक समूह की प्रस्तुति का दृश्य था
कि कक्षा कक्ष में अध्यापिका बच्चों की हाजरी करती है। बच्चे “यस मैडम” बोलते हैं।
अब टीचर गुड्डी का नाम पुकारती है। कोई आवाज नहीं आती। टीचर दुबारा नाम लेती है तो
एक बच्ची बोलती है, “गुड्डी नहीं है।” टीचर पूछती है, “कहाँ है?” बच्चे कहते हैं – “गुड्डी गायब
है!”
रोलप्ले खत्म होने के बाद हमने “गुड्डी गायब है...” वाक्य को खोलना शुरू किया।
हमने लड़कियों से कहा कि अभिनय में और ज्यादा सच्चाई लाने के लिए विवरणों में और
गहराई लाना जरूरी हो जाता है। फर्ज़ करो कि गुड्डी स्कूल में नहीं है तो वह कहाँ हो
सकती है। इसकी चर्चा में उन सभी ठिकानो को टटोला गया जहां एक स्कूल से ड्रॉप आउट
के बाद लड़की के होने की संभावनाएं हो सकती हैं। चर्चा में यह पता ही नहीं चला कि
कब यह वाक्य “गुड्डी गायब है” रोल प्ले के संदर्भ विशेष की गुड्डी से निकल, सामान्यीकृत होकर एक आम लड़की या
महिला की स्थिति का रूपक बन कर सामने आ गया। चलो, जहां तक चले इस रूपक से ही आगे
बढ़ा जाए...
एक सवाल किया गया, “और कहाँ कहाँ से गुड्डी गायब है ?”
“अस्पताल से... बस से ... बस स्टैंड से .... शहर से .... गाँव से... गली ...
से .... घर से .... ”
“बस,
गयाग करने के तरीके अलग-अलग हैं।”
इन्हीं तरीकों में से एक-एक तरीके पर चर्चा करने व उस पर एक कहानी लिख लाने का
होमवर्क तीनों कक्षाओं के मिश्रित समूह बनाकर दिया गया। आशय यह भी था कि एक तो
होमवर्क के बहाने लड़कियां उन प्रक्रियाओं के बारे में मिल कर सोचेंगी जो लड़कियों
को वंचित बनती हैं, दूसरे मौखिक अभिव्यक्ति पर आज काफी काम हो चुका था इसलिए
थोड़ा ठहरकर लिखित अभिव्यक्ति भी उभर कर आ सकें।
अगले दिन सुबह केजीबीवी में पहुँचते ही लड़कियों ने एक्टिविटी हाल में इकट्ठे
होकर कहानियाँ सुनाईं।
एक कहानी में संयुक्त परिवार है जहां महिला को अब और लड़कियां न जनने की हिदायत
मिल रही है।
एक कहानी,
ऐसा लगता है इसी कहानी को आगे बढ़ाती है, जिसमे एक दंपत्ति डॉक्टर से गुजारिश करता है कि वह
अल्ट्रासाउंड के नतीजों को जेंडर में अभिव्यक्त कर दे।
तीसरी कहानी भी पहली वाली का तीसरा एपिसोड लगती है, जिसमें कन्या भ्रूण समाप्ति की ओर
है।
चौथी कहानी में खाने की थाली में संतुलन का गड़बड़झाला दिखता है। लड़के की थाली
बनाम लड़की की थाली।
पाँचवी कहानी में लड़की की पढ़ाई छुड़ाई जा रही है।
छठी कहानी में एक छोटी लड़की का विवाह किया जा रहा है।
सभी कहानियाँ पढ़कर समझ में आया कि इन सभी कहानियों में कहानियों का प्लाट तो
है लेकिन अभी इनकी और फिलिंग होनी बाकी है।
मैंने कहा, “ये
कहानियाँ अभी कुछ विवरणों को चाह रही हैं।” उदाहरण के लिए लड़कियों को निम्न
वाक्यों पर ध्यान देने के लिए कहा –
“महिला पर ससुराल वालों ने भ्रूण जांच करने का दबाव बनाया।”
“घरवालों ने लड़की की पढ़ाई छुड़ा दी।”
उपरोक्त वाक्यों पर गौर करें तो यहाँ शब्दों के तीन युग्म हैं। जैसे – (एक) महिला व लड़की (दो) ससुरालवालों, घरवालों और (तीन) दबाव बनाया तथा
छुड़ा दी। लड़कियों से कहा कि पहले युग्म में कहानी के केंद्रीय पात्र हैं इनमे जान
तो डालनी ही पड़ेगी। इसके लिए पहले इनका नामकरण करना होगा तभी पात्र का आगे के
चरित्र उभरेगा। दूसरे युग्म की संज्ञा भी जातिवाचक है इन्हे व्यक्तिवाचक करने पर
कहानी के निर्दोष पात्र बच सकते हैं। कहानियाँ तो आखिर इंसाफ करती हैं न। मुख़तसर
में लड़कियों से कहा गया कि जो पात्र ओप्रेसर हैं उन नामों व रिश्तों कों भी संज्ञा
दीजिए। तीसरे युग्म के बारे में तफसील इसलिए दी कि इसी से ही कहानियों में संवाद आ
पाएंगे। लड़कियों से कहा गया कि आपने लिखा कि पढ़ाई छुड़ा दी। लेकिन यहा यह
नहीं पता चल रहा कि किसने क्या कह कर या कर के पढ़ाई छुड़ा दी, या क्या कह कर दबाव
बनाया ?
यहाँ कुछ बातचीत की गुंजाइश है जिसे दिये बिना कहानी में सच्चाई नहीं आ पाएगी। अब कुछ क्रिएटिव लड़कियों के ग्रुप ने एक घंटे
का समय लिया और कहानियों को मरम्मत करके सोंप दिया।
सभी कहानियों में एक क्रम नज़र आता है। अगर गुड्डी भारतीय महिला का रूपक
है तथा गुड्डी को सभी कहानियों का केंद्रीय पात्र मानें तो दरअसल ये सभी कहानियाँ
एक ही कथा के विभिन्न सोपान है।
तटस्थता मतलब आइडिया ग्रुप
अब लड़कियों के समूह उनकी रुचि और सामर्थ्य के हिसाब से बनाने का समय था।
एक समूह अभिनेताओं का
दूसरा समूह संगीत का
तीसरा समूह मंच सज्जा के लिए डिज़ाइनर्स का
लड़कियों का एक ऐसा तटस्थ समूह था जिसने किसी भी समूह में जाने की रुचि नहीं
दिखाई। एक बार तो मन में आया कि सबको बराबर संख्या में प्रत्येक समूह में धकेल
दिया जाए। यह बहुत आसान है। कई बार इसे संभावित एक मात्र विकल्प के रूप में किया
भी है। हमेशा शिक्षक का आसान विकल्प की और जाना नवाचार की सम्भावना को कुचलना भी
होता है। अचानक मुझे ख्याल आया... मैंने कहा कि यह आइडिया समूह है। यह समूह
हमारे साथ रहेगा... विशेष तौर पर अभिनेताओं के समूह के साथ। यह विचार रंग भी लाया।
जब हम अभिनेताओं के साथ स्क्रिप्ट पे काम कर रहे थे तब इस तथाकथित तटस्थ समूह से
आइडिया तो आए बल्कि अधिकतर ने अपनी तटस्थता को भंग करते हुए समय-समय पर आकार कहा
कि क्या यह मैं ट्राई कर सकती हूँ? इस प्रकार आइडिया समूह का आइडिया काम कर गया।
गहरे पानी पैठ
अभनेताओं वाले समूह के साथ स्क्रिप्ट पर काम आगे का कहानी पर काम करने के
दौरान स्क्रिप्ट के संवाद लगभग लिखे जा चुके थे। उनके सम्पादन व संयोजन के साथ
अभिनय पर काम समांतर रूप से चल रहा था। गुड्डी गायब है यह तथ्य हर लड़की के लिए कोई
पहेली जैसा नहीं था। इस अभिधा को वे व्यंजना के रूप में प्रयोग करना सीख चुकी थीं।
जब ऐसा था तो उन्हे पता था कि पूरे भारत मे 1000 पुरुषों की तुलना में कितनी
गुड्डियाँ गायब हैं। मालूम करना था तो राजस्थान का लिंगानुपात। गूगल पर लिख कर एक
बार एंटर मारने पर आ गया।
लेकिन लड़कियों के सवाल इससे आगे जाते हैं-
जोधपुरा का ?
लूनी का?
गाँव नंदवान का?
इसकी पड़ताल में जनगणना 2011 के दस्तावेज़ खंगाले गए। वहाँ जनसंख्या के आंकड़े तो
हैं लेकिन लिंगानुपात तो निकालना सीखना होगा... टीचर्स और टीम के लिए चुनौती ...
मदद लेना जारी... यहा फोन लगाओ... वहाँ फोन लगाओ ... भंवर जी से पूछो ... खुद भी
हिसाब लगाओ ... गणित के नतीजे पर पहुँचना बहूत उत्साह वर्द्धक होता है। जनसंख्या
के इन आंकड़ों ने नाटक के आखिरी दृश्य को एक अद्भुत गणितीय अभिव्यक्ति बना दिया।
नाटक के आखिरी दृश्य मे बाल विवाह के आखिरी संवाद "स्वाहा..." के
पश्चात जब एक लड़की आकार बोलती है, "इस तरह एक और गुड्डी गायब हो गई..." तो
यह सिलसिला चल पड़ता है।
"इसी तरह रोज हजारों लाखों गायब होती हैं..."
"अलग-अलग तरीकों से... "
“पूरे देश में...”
"आपके राज्य मे... "
"आपके शहर में ... "
"आपके गाँव में ... जी हाँ नंदवान में ... "
नंदवान की कुल जनसंख्या है .........5648
"नंदवान में पुरुषों की संख्या है ........2893 "
"नंदवान में महिलाओं कि संख्या है ........2755 "
"सीधा सा गणित है कि आपके गाँव नंदवान में 138 गुड्डियाँ गायब है।"
"जी हाँ,
138 गुड्डियाँ गायब हैं आपके नंदवान में ..."
"कुछ सुना आपने?"
केजीबीवी के आँगन के बीच में खड़ी लड़कियां अपना सवाल चारों और से दर्शकों भरे
बरामदों तथा छज्जों की और उछालती हैं। सबसे पहले वे सामने की खास चार कुर्सियों से
मुखातिब हैं। इन चारों कुर्सियों पर चार खास महिलाएं बैठी हैं। दो पंचायतों की दो
सरपंच,
एक उप सरपंच, एक पंचायत समिति सदस्य। तीन घूघट में हैं। जवाब
शायद यहाँ है लेकिन पुरानी जमी हुई खामोशी दिखाई दे रही है। अब लड़कियां दायीं और
की दर्शक दीर्घा से भी पूछती हैं, “कुछ सुना आपने?”
यहाँ गाँव के प्रोढ़ पुरुष बैठे हैं। ये सामने की कुर्सियों की खामोशी की एक
वजह भी हो सकते हैं। सवाल इधर की दीवार से भी टकराकर लौट आया। लड़कियों ने अब सवाल
सामने के छज्जों पर बैठे नवयुवक व नवयुवतियों के समक्ष शटलकोक सरीखा उछाल दिया।
यहाँ शायद प्रश्न के उत्तर हैं और प्रश्न के प्रतिप्रश्न भी। लेकिन सवालों से पेश
आने का होंसला व अभ्यास नहीं। अब एक खुसर-पुसर शुरू हो गई। लड़कियों ने फिर पूछा, “कुछ सुना आपने.... कुछ कहना है
आपको...?”
कोरस – “नहीं कुछ नहीं सुना... ”
कोरस – “क्यो...?”
कोरस – “क्योंकि जनता ऊंचा सुनती है।”
(कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो शेयर ज़रूर करें। इससे इन्टरनेट पर हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा तथा मेरी नाट्यकला व लेखन को प्रोत्साहन मिलेगा। )
दलीप वैरागी
09928986983
09928986983
दलीप जी विचरो की गहराई तक जाना व् उनको ज्यूँ का त्यू उकेर देना, इस कार्य में आपका कोई सानी नहीं ।
ReplyDeleteये अभिव्यक्ति केवल इसी रचना पर नहीं अपितु पूर्व में भी पढ़ी गई समस्त रचनाओं के आधार पर दे रहा हूँ।
"पुनर्वा की तरह जीवित होना" इस बात का द्योतक है कि साहित्य पर आपकी जबरदस्त पकड़ है ।
इस प्रकार कीगतिविधियात् मेरे द्वारा प्रिंसिपल्स की लीडरशिप ट्रेनिंग्स मैं भी करवाई जाती हैं, वाकई वे लोग भी खुद आनंदित होते हैं बच्चो की तरह। इन गतिविधियों के माध्यम से उनके खोये हुए बचपन को लाते लाते मैं भी कब लौट आता हूँ बचपन में,पता ही नहीं चलता ।
एक बार पुनः साधुवाद ।
दिलीप जी इतनी शानदार अभिव्यक्ति के लिए तहे दिल से शुभकामनायें
ReplyDeleteअच्छा लेख है।
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत व्यवहारिक और महत्वपूर्ण पहल। बधाई।
ReplyDeleteबहुत व्यवहारिक और महत्वपूर्ण पहल।बधाई।
ReplyDeleteबहुत व्यवहारिक और महत्वपूर्ण पहल।बधाई।
ReplyDeleteबहुत व्यवहारिक और महत्वपूर्ण पहल।बधाई।
ReplyDelete