Saturday, November 19, 2011

सुचना का अधिकार अधिनियम (Right to information act) : कानून में दम है

यह घटना सूचना का अधिकार कानून कि ताकत की सक्सेस स्टोरी  है | इस ताकत को हमने आजमाया है |इसकी सिर्फ जानकाRTI-Logoरी होना ही काफी नहीं है बल्कि इसको आजमा कर देखना चाहिए | अगर देश का हर जागरूक इंसान ऐसे अपनी मुश्किलों में इस कानून का इस्तेमाल करेगा तो भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए किसी लोक पाल बिल  की जरूरत नहीं |
 
बात पिछले दो साल की है | दिन व तारीख तो याद नहीं, हाँ इतना पता है कि उस दिन सूर्य ग्रहण पड़ा था |  ग्रहण खग्रास नहीं खण्ड ग्रास था | ऐसा नहीं कि ग्रहण होने की वजह जयपुर थम गया हो लेकिन फिर भी ऐसे बहुत से लोग रहे होंगे जो उस वक्त घर से नहीं निकले होंगे | दो तीन तो हमारे ऑफिस में ही थे जिन्होंने खुले में जाने से परहेज किया | बावजूद इसके मैं और मेरा दोस्त जो कि मेरा सहकर्मी भी है ने इन दो घंटों का इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण काम को करने में किया | काम दरअसल यह था कि मेरे दोस्त भँवर ने बताया कि उन्होंने LIC (जीवन बीमा) की एक पॉलिसी विड्रो करवाई थी, तीन - चार महीने पहले | लेकिन भुगतान का चैक जो कि एक सप्ताह में उनके पास पहुंचना चाहिए था वह अभी तक उनके पास नहीं पहुंचा था | इसके लिए भँवर जी उनके ऑफिस में कई चक्कर लगा चुके थे | कई बार फोन भी किया | कभी काम से सम्बन्धित जिम्मेदार व्यक्ति सीट पर नहीं होता तो कभी मिल जाता तो प्रकिया  में है कह कर टरका देता | ग्रहण वाले दिन हमने योजना बनाई कि क्यों न हम (RTI)   सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत अर्जी लगाकर पता तो करे कि मामला कहाँ अटका हुआ है ? भंवर  जी ने कहा कि यह ठीक बात है “हम दूसरों को तो सूचना का अधिकार के लिए जाग्रत करते हैं,  आज खुद के लिए भी कर के देखें | तुरंत हमने एक अर्जी सूचना अधिकारी , जीवन बीमा कार्यालय जयपुर के नाम लिखी | याद रखें सूचना अधिकारी नाम का प्राणी हर कार्यालय में होता है | और कार्यालय की किसी दीवार पर उसका नाम भी चस्पा होना चाहिए | तो हमने लिखा कि हमें सूचना का अधिकार अधिनियम  २००५ तहत निम्न लिखित  जानकारियां चाहिए -
  1. मेरे काम में हो रहे विलम्ब का यथोचित कारण बताएँ |
  2. मेरे काम की अब तक की प्रगति की स्थिति बताएँ | तथा
  3. मेरे काम के लिए कौन-कौन व्यक्ति जिम्मेदार  हैं | उनके नाम बताएँ ताकि प्रमाद पाए जाने पर जरूरी कानूनी कार्यवाही उनके खिलाफ की जा सके |
अर्जी लिखने तक सूर्य ग्रहण कि गिरफ्त में आ चूका था | और हम  तय  कर चुके थे कि आज हम और सूर्य एक साथ ग्रहण से निकलेंगे | सूर्य चन्द्रमा की छाया से और हम भ्रष्टाचार की गिरफ्त से | हम सीधे LIC ऑफिस पहुंचे | सेकंड फ्लोर पर बड़ा सा हॉल,  हॉल में कुर्सियां ही कुर्सियां … कुर्सियों के आगे मेजें ही मेजें …  मेजों पर फाइलों के ढेर … कुछ कुर्सियों पर बाबू लोग आसीन, कुछ पर टंगे कोट… इसके अलावा भी बहुत साजो सामान | 
जैसा हम सोच रहे थे वैसा यहाँ कुछ भी नहीं था | यहाँ किसी भी कोने पर सूचना अधिकारी का नाम नहीं लिखा था |  क्या करें, किससे पूछें ?  इसी उहापोह में एक टेबल पर फाइलों से झांकते हुए हमने एक बड़े ऑफिस कर्मी से पूछ लिया “ यहाँ का सूचना अधिकारी कौन है ?”  इस एक वाक्य ने जैसे वहाँ रुके हुए पानी में पत्थर मार दिया हो | अभी तक जो सभी जो एक दूसरे से असम्प्रक्त से  अपनी गतिविधियों में मस्त थे | कही बातचीत भी तो ‘वोटिंग फॉर गोडो’ के पात्रों की तरह उकताहट मिटाने  की विवशता युक्त प्रयास –सी | इस एक वाक्य ने सब को जोड़ कर रख दिया | सबकी नज़रें हम पर केंद्रित हो गईं | ऐसे सवाल से सामना करने की उम्मीद किसी को नहीं थी | हमने फिर अपना सवाल दोहराया | वह चुप , चुप्पी कुछ सघन हो गयी थी क्योंकि उसकी चुप्पी में अब सभी  चुप्पियाँ शामिल हो गयीं थीं और मानो उन सब चुप्पियों ने एक बड़े  सन्नाटे का निर्माण कर दिया हो | वह सन्नाटा जैसे हमसे ही सवाल कर रहा था -  वाह ! भला यह भी कोई बात है ? ऐसा  भी कहीं होता है  ? अरे भाई कानून है तो क्या लेकिन काम तो काम के तरीके से ही होता है ! सन्नाटे कागुब्बारा जल्दी ही फूट गया | उसे हमने ही फोड़ा यह कह कर “ हमें सूचना अधिकारी का नाम बताइए हमें अर्जी लगानी है और आपने यहाँ उसका नाम भी नहीं लिख रखा जो कि यहाँ होना चाहिए |” इतने में ही भंवर जी ने अर्जी टेबल पर दे मारी | मगर मजाल है किसी ने उसे छुआ, अर्जी नहीं जैसे वर्जित फल हो !  इतने में ही पीछे से आवाज़ आयी आपको मैनेजर साब ने बुलाया है | हम मैनेजर के केबिन में चले गए | हमारा प्रयोजन पहले ही प्रेषित था,  भूमिका पहले ही बन गई थी | इसलिए बिना भूमिका के हमने अर्जी सरकाई | साहब ने पढ़ी , साहब की घंटी घनघनाई , तुरंत एक महिला कर्मचरी आई … साहब बोले , “ इन सर का काम क्यों नहीं हुआ ?”
कर्मचारी बोलीं , “ सर …सर.. इनका…वो ….जो …जो छुट्टी पर …
मैनेजर बोला , “ वो छुट्टी पर है तो क्या काम नहीं होगा … जाओ फोरन इनका चेक बना कर लाओ|  "
अगले १० मिनट में चैक भँवर जी के हाथ में था |
मैनेजर बोले, “ कोई और काम हो तो जरूर बताएँ |”
हम बोले, “ अभी तो काम यही है कि आप इस अर्जी को विधवत लगाओ |”
मैनेजर - अब तो रहने दो आपका काम तो हो गया |
हम - पता तो चले कि चूक कहाँ है ?
सारांश यह है कि मैनेजर ने कहा कि आप जिसकी गलती है माफ़ कर दीजिए .. नौकरी … बाल बच्चों का सवाल …
हम  चलने  लगे तो मैनेजर ने कहा कि आप यह अर्जी मुझे देते जाओ ताकि मैं अपने स्टाफ को दिखा सकूँ कि अब पुराने वाला तरीका नहीं चलेगा |
जब हम वहाँ से निकले तो ग्रहण हट चूका था सूर्य का भी और भ्रष्टाचार का भी | लेकिन ग्रहण तो आते रहते हैं | लेकिन जज्बा सूरज वाला होना चाहिए जो हर बड़े ग्रहण के बाद निकल के आता है नयी रौशनी के साथ |
(मेरे दूसरे  ब्लॉग बतकही से)













Monday, November 14, 2011

कहीं यह जनश्रुति न बन जाए ....

 

यह अनुबाव मैंने अपने दूसरे ब्लॉग बतकही शेयर किया था लेकिन आज मैंने एक शिक्षिका प्रशिक्षण में मैंने इस अनुभव को फिर सुनाया तो मेरी इच्छा हुई कि इसे 'कथोपकथन पर फिर से शेयर किया जाए ।

के जी बी वी पीपलू की लड़कियों की शैक्षणिक स्तिथि का ग्रोथ चार्ट मैंने शिक्षिकाओं से बात की कि जो लड़किया ए समूह में पहले से हैं वो तो हैं , लेजिन जो पिछले महीने बी या सी में थीं उन्हें ठीक से पता करो कि वो कहाँ पहुंची हैं. इस कम को करने के बाद शिक्षिकाओं ने जो रिपोर्ट बनाई उसे देख कर मैं चोंक गया . सब लड़कियां ए में थीं. यह उम्मीद से कहीं ज्यादा था. मैंने कहा अगर ऐसा है तो यह बड़ी बात है. उन्होंने कहा मौसमी और पाना को छोड़ कर सब लड़कियां किताब पढ़ने लग गयी हैं और गणित कि संक्रियाओं को कर रहियो है. मैंने उन सभी लड़कियों से किताब पढवा कर देखी .सब धाराप्रवाह पढ़ रहीं थीं . हाँ अभी उन लड़कियों को तीन संख्याओं का भाग करने में दिक्कत है. लेकिन उनके साथ कक्षा के अनुरूप पाठ्यपुस्तक के साथ काम शुरू कर दिया है . अतिरिक्त समय में बुनियादी चीज़ों को मजबूत करने पर काम हो रहा है.
यहाँ बात रह जाती है मौसमी और पाना की . ये दोनों आठवीं जमात की लड़कियां हैं. एक बात पूरे के जी बी वी में जनश्रुति कि तरह फैली है कि “ मौसमी और पाना पढ़ नहीं सकती “ ये तीन साल से के जी बी वी में हैं.
मैंने टीचर्स से पूछा कि क्या बात है इन लड़कियों की दिमागी सेहत तो ठीक है? वे बोलीं हाँ एकदम ठीक है . बस इनका मन पढ़ने में नहीं लगता . मैंने सोचा, ‘ मौसमी पढ़ नहीं सकती वाला मिथक अब टूटना चाहिय.’ मैं कक्षा कक्ष में गया . हैड टीचर तारा नामा भी मेरे साथ थीं. मैंने पाना को पढ़ने के लिए कहा तो वह वाक्यों और शब्दों को तोड़ तोड़ कर पढ़ रही थी . इसके बाद पाठ्य पुस्तक मौसमी के हाथ में दी. मौसमी पुस्तक खोले कड़ी रही लेकिन पढ़ने के लिए लैब तक नहीं हिलाया. हम दोनों ने उसे खूब प्रोत्साहित किया . वह किताब देखते हुए भी किताब से अलगाव बनाए हुए थी . मौसमी में कोई जुम्बिश नहीं हुई. मैं सोच रहा था कि अब क्या किय जाए. तभी मुझे ध्यान आया कि मेरे हाथ में के जी बी वी कि लड़कियों के नामों कि लिस्ट है . मैंने मौसमी से कहा कि यह तुम्हारे स्कूल कि लड़कियों के नामों कि लिस्ट है, ‘इन्हें पढ़ो तो जरा.’ मौसमी पूरी लिस्ट धारा प्रवाह पढ़ गयी . यह क्या हुआ! हम चकित थे . मैं के जी बी वी से लौट कर होटल में देर तक सो नहीं पाया . सोचता रहा कि तीन साल तक इस लड़की को कुछ भी सुपाठ्य नहीं मिला जिसे पढ़ कर मौसमी सफलता का अहसास कर सके. उसके सामने तो हमेशा (कु) पाठ्य पुस्तक ही रही. जिसके अर्थों के तिलस्मी द्वार वह खोल नहीं पाती. तहरीरों में उसे कही. तक़रीर जज़र नहीं आती. उसे पता नहीं इन किताबों से कहाँ पहुंचा जाता है. फलस्वरूप यह फतवा “मौसमी पढ़ नहीं सकती.” उसकी नियति से जुड़ जाता है. होना यह चाहिए कि उसके बस्ते से सारी पाठ्य पुस्तकें निकाल कर उतनी ही संख्या में कहानियों कि किताबें रख देनी चाहिए और फिर देखा जाए कि “मौसमी पढ़ सकती ....”
अगले दिन ताराजी से मैंने बात की. उनहोंने दोनों लड़कियों को बुलाकर कहा कि कंप्यूटर रूम में लाईब्रेरी कि किताबें राखी हैं , जो भी , जितनी भी पसंद आए ले लो. दोनों लड़कियां किताबों कि तरफ दौड़ चलीं . ईश्वर करें ये कभी न रुकें .

अलवर में 'पार्क' का मंचन : समानुभूति के स्तर पर दर्शकों को छूता एक नाट्यनुभाव

  रविवार, 13 अगस्त 2023 को हरुमल तोलानी ऑडीटोरियम, अलवर में मानव कौल लिखित तथा युवा रंगकर्मी हितेश जैमन द्वारा निर्देशित नाटक ‘पार्क’ का मंच...