Monday, July 4, 2016

“ भूलेंगे तो तब न, जब हम उसे रटेंगे!”

पिछली 29 - 30 जून 2016 को अजमेर के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों की कुछ लड़कियां उनके विद्यालयों में होने वाली प्रमुख गतिविधियों की शेयरिंग व डेमोंस्ट्रेशन के लिए जयपुर आयीं थीं। इन केजीबीवी में समाज के सबसे वंचित तबके की लड़कियां पढ़ती हैं। ये लड़कियां उन दूर दराज क्षेत्रों से आती हैं जहां विद्यालय पहुँच में न होने के कारण शिक्षा से वंचित हो जाती हैं। केजीबीवी तसवारिया की लड़कियों ने  इंद्रलोक ऑडिटोरियम पर एक नाटक भी प्रस्तुत किया जिसने खूब सराहना बटोरी। एक पत्रकार वार्ता में जब इन लड़कियों से नाटक के बारे मे सवाल पूछे गए तो उनमे एक सावल था, “आप इतने लंबे संवाद कैसे याद रख पाती हैं, आप भूल नहीं जाती?” हमें एक बारगी लगा कि शायद इस सवाल का जवाब किसी तथाकथित बड़े को उठकर देना होगा। लेकिन इस आशंका को निर्मूल करते हुए कक्षा 8 की लक्ष्मी ने फटाक  से आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया, “ भूलेंगे तो तब न, जब हम उसे रटेंगे!”
लक्ष्मी के इस जवाब के आखिरी शब्द की प्रतिध्वनि सुनाई दे उससे पहले पूरा हाल आधा मिनट के लिए तालियों की गड़गड़ाहट में डूब गया।  तालियों की डोर को अपने हाथ में थाम लक्ष्मी ने अपनी बात जो अभी तक हवा में तैर रही थी उसे तर्क के पैरों पर टिकाते हुए और स्पष्ट किया, “हम संवादों को रटते नहीं... ये हमारे आस-पास से अपने आप आते हैं।” उसने खुद ही उदाहरण भी रखा, बिलकुल शुक्ल जी की सूत्र व्याख्यान शैली में। लक्ष्मी किसी आचार्य सरीखी अब दृष्टांत रखती है, “अब देखो जैसे मैं बहू का रोल करती हूँ तो मुझे उसके लिए कोई संवाद रटने नहीं पड़ते। इसके लिए मैं अपने गाँव की किसी बहू को देखती हूँ और उसके जैसा करने की सोचती हूँ...” यहाँ लक्ष्मी नाट्यशास्त्र के किसी बड़े सिद्धान्त का प्रतिपादन तो नहीं कर रही लेकिन लक्ष्मी के चेहरे पर  वे संभावनाएं व उम्मीद साफ नज़र आती हैं, जो नाटक से की जाती है। लक्ष्मी की अभिव्यक्ति का आत्मविश्वास इस मान्यता को बल देता है कि नाटक अपनी मूल परिकल्पना में ही सीखने का यंत्र है। लक्ष्मी यह साबित करती है कि नाट्य निर्माण की प्रक्रिया से गुजरा हुआ कोई भी व्यक्ति सोचे समझे हुए जवाब आत्मविश्वास के साथ दे सकता है।
लक्ष्मी के इस अनुभव के बहाने से मुझे भी अपने ऐसे ही मुद्दे पर लिखे पुराने ब्लॉग याद आ गए उनके लिंक नीचे दे रहा हूँ।



(कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो शेयर ज़रूर करें।  इससे इन्टरनेट पर हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा तथा  मेरी नाट्यकला व  लेखन को प्रोत्साहन मिलेगा। ) 


दलीप वैरागी 
09928986983 

2 comments:

  1. Good Dalip ji, words comes through experiences...

    ReplyDelete
  2. bilkul sahi mann se kiya gya koi bhi work ratta nai jata bas ho jata hai....!!!

    ReplyDelete

अलवर में 'पार्क' का मंचन : समानुभूति के स्तर पर दर्शकों को छूता एक नाट्यनुभाव

  रविवार, 13 अगस्त 2023 को हरुमल तोलानी ऑडीटोरियम, अलवर में मानव कौल लिखित तथा युवा रंगकर्मी हितेश जैमन द्वारा निर्देशित नाटक ‘पार्क’ का मंच...