इसका प्रवर्तन ब्राज़ील के नाट्य निर्देशक
अगस्टो बोल ने किया था। उन्होने इस रंगमंचीय तकनीक को समाज के वंचित दलित लोगों की
आवाज को उठाने के लिए किया, जिस रंगमंच को उन्होने “थियेटर ऑफ ओप्रेस्ड ” (Theatre of the
oppressed) का नाम दिया। मेरा इस विधा से परिचय फ्रांस के निर्देशक जोम्पियर
बेसनार्ड ने लगभग 15 साल पहले एक कार्य शाला में करवाया था।
इस exercise में अभिनेताओं
या बच्चों को 7-10 के समूह में किसी सामाजिक स्थिति पर एक फ्रीज़ इमेज यानि झांकी बनाकर
लाने के लिए कहें। इस झांकी में उन्हे चुनौती दें कि स्थिति को इस प्रकार प्रदर्शित
करें कि कि उसमें समाज में विद्यमान गैर बराबरी साफ दिखाई दे। प्रदर्शन के वक्त दर्शकों
से पूछा जाए कि आपको इस झांकी में किस तरह का पवार समीकरण, समस्या
या शोषण दिखाई दे रहा है। जब यह स्पष्ट हो जाए तो दर्शकों से उस इमेज को बादल कर आदर्श
इमेज में परिवर्तित करने के लिए कहें। याद रहे कि जा भी समाधान दर्शक द्वारा बताए जाएँ
वो यथार्थ हों व उनके पीछे कोई तार्किक आधार हो। कोशिश यह रहनी चाहिए कि एक अच्छी ख़ासी
चर्चा शुरू हो सके।
यह गतिविधि समाज के
यथार्थ को तटस्थता से समझने में विद्यार्थियों की मदद कर सकती है। उन्हे समस्या समाधान
के अभ्यास देती है।
इस गतिविधि से पूर्व
यदि वार्म अप के लिए स्टेचू वाली गतिविधि करवाएँगे तो बेहतर रहेगा।
(कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो शेयर ज़रूर करें। इससे इन्टरनेट पर हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा तथा मेरी नाट्यकला व लेखन को प्रोत्साहन मिलेगा। )
दलीप वैरागी
09928986983
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Nice & fruitful information.
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