Wednesday, March 25, 2015

थियेटर एक्सर्साइज़ (Theatre exercise-2) : स्थायी पता


यह एक पुरानी गतिविधि ही है जिसे ग्रुप में सहजता लाने के लिए किया जाता है। मैंने इसके प्रयोजन के अनुसार नामकरण करने की कोशिश की है। किसी भी कार्यशाला या प्रशिक्षण में जब नए समभागी हमारे पास आते हैं तो वे अलग गाँव, जाति, धर्म, उम्र, जेंडर व आर्थिक स्थिति से आते हैं। प्रशिक्षण के दौरान भी वे अपने सामाजिक समूहों में ही सीमित होकर रह जाते हैं। परिचय की गतिविधियों से हालांकि वे अपने दरों को बढ़ाते हैं फिर भी वे जब बड़े समूह में बैठते हैं तो अपने सामाजिक संदर्भों वाले समूहों में ही सहजता महसूस करते हैं। वे इस स्थिति को तोड़ कर वे दूसरे लोगों से घुलें-मिलें इसके लिए यह गतिविधि उपयोगी हो सकती है।
संभागियों को हॉल के अंदर संगीत की धुन पर चहलकादमी करने के लिए कहें। संभागी निर्देशक के निर्देशों को सुनकर वैसा करें –
·     उम्र की वरीयता के अनुसार कतार में खड़े होना
·     भाई-बहनों की संख्या के क्रम में खड़े होना
·     वर्णमाला के क्रम में नाम के प्रथमाक्षर के अनुसार खड़े होना

अंतत: जब लगे कि निर्देशक को मनवांछित बैठक व्यवस्था मिल गई है तो वह संभागियों को कहे कि वे अपने अगल बगल वाले व्यक्ति को पहचान ले कि कौन दायीं और है कौन बाईं और है।  उन्हें आपस में हल्का सा परिचय को भी कहें। अब फिर से संभागियों को संगीत पर घूमने के लिए कहें । पुन: पहले वाली स्थिति में आने के लिए कहें। अगर थोड़ी चूक हाओटी है तो एक बार और कर के देख लें। अब संबगियों को इसी क्रम में घेरे में बैठने के लिए कहें। यह भी उन्हे कह दे कि यह इस कार्यशाला में आपका स्थायी पता है। जब जरूरत पड़े तो बादल भी सकते हैं। 
(कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो शेयर ज़रूर करें।  इससे इन्टरनेट पर हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा तथा  मेरी नाट्यकला व  लेखन को प्रोत्साहन मिलेगा। ) 


दलीप वैरागी 
09928986983 

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