कल 4 अक्तूबर 2015 का दिन अलवर रंगकर्म में काफी महत्त्व का था। वह
इस लिए कि अलवर में नवनिर्मित प्रताप ऑडिटोरियम में पहली बार कोई नाट्य
गतिविधि संपन्न हुई। यूँ तो यह ऑडिटोरियम बने हुए लगभग दो साल का वक़्त हो गया है
लेकिन रंगकर्मियों के लिए यह आज भी मरीचिका बना हुआ है। इसको बुक करने का शुल्क
इतना अतार्किक है कि रंगकर्मी इसको बुक करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। अंततः
यह काम रंग संस्कार थियेटर ग्रुप के देशराज मीणा ने कर दिखाया। और उन्होंने
"हास्य नाट्य महोत्सव" के रूप में
एक खूबसूरत शाम का अनुभव अलवर के दर्शकों के लिए रच दिया।
कल शाम प्रताप ऑडिटोरियम पर तीन नाटकों का मंचन हुआ जिसका विवरण इस प्रकार है
-
पहला नाटक – “निठल्ला”
हरिशंकर परसाई के व्यंग्य रचनाओं पर आधारित इस नाटक का निर्देशन देशराज मीणा
ने किया। इस नाटक में दो अभिनेताओं दीपक पाल सिंह व अंकुश शर्मा ने अपने सधे हुए
अभिनय से दर्शकों को आद्यंत जोड़े रखा। दोनों अभिनेताओं ने सादगी से मंच पर कथा का
नैरेशन भी किया और विभिन्न चरित्रों को भी निभाकर दर्शकों को गुदगुदाया और परसाई जी के व्यंग धार से कहीं दर्शकों के मानस पर नश्तर भी छोड़े। यह सधे
हुए अभिनय की मिसाल ही है कि कोई अभिनेता बड़ी चतुराई से दर्शक दीर्घा में बेबाकी
से फोन पर बात करते हुई दर्शक की भी खबर ले डाले, बिना अपनी
भूमिका से विचलित हुए। इस व्यंग नाटक ने जहाँ इन अभिनेताओं ने नेता, नौकरशाह व संतों की पोल खोली वहीं आखिरी संवाद तक आकर दर्शक को भी नहीं
छोड़ा और गिरेबां में झांकने के लिए मज़बूर कर दिया।
दूसरे नाटक " उसके इंतज़ार में" के लेखक निर्देशक प्रदीप प्रसन्न हैं । इन्होंने नाटक में अभिनय भी किया।
प्रदीप इन दिनों अहमदाबाद में रहकर शोध कर रहे हैं तथा वहां रहते हुए उन्होंने
वहां शौकिया रंगकर्मियों की एक अच्छी खासी टीम बना ली है, जो
वास्तव में बहुत बड़ी बात हैं। अपनी टीम के साथ अलवर में मंचन के लिए आए थे। उसके
इंतज़ार में एक पूर्णतया हास्य नाटक है। इस
नाटक में एक परिवार की कहानी है, जहाँ लड़की को देखने के लिए
आए हैं। विभिन्न परिस्थितियों के माध्यम से प्रदीप हास्य रचते हैं। पारिवारिक
नोकझोक है, नौकरानी से इश्क है, बेरोजगारी
है व मनुष्य की सहज दुर्बलताएँ हैं । इन छोटी-छोटी स्थितियों के माध्यम से प्रदीप
जहाँ गुदगुदाते हैं वहीं गंभीर चोट भी कर जाते हैं और अगले ही पल हास्य की मसाज भी
कर देते हैं। एक नाटककार के रूप में प्रदीप प्रसन्न विधा की नब्ज़ पकड़ चुके हैं।
उनसे इसी तरह और लेखन की आगे भी उम्मीद है।
तीसरे नाटक के रूप में मोलियार की रचना "बिच्छू " का मंचन किया गया। इस नाटक का निर्देशन अंकुश शर्मा ने किया। अंकुश इस
नाटक में भी प्रमुख भूमिका में थे। मोलियार की इस क्लासिक कृति के हिंदुस्तानी अनुवाद
में दो परिवारों की कहानी है। जहाँ रूढ़िवादी कंजूस पिता भी हैं तो उनकी तथाकथित तरक्कीपसंद
इश्कमिज़ाज़ सन्तानें भी। इस पीढ़ी अंतराल और
इस खाई को अपने अजीबोगरीब कौशल से सामंजस्य बनाने और उनकी खबर लेते हुए रहमत के
किरदार को पूरी ऊंचाई पर लेकर जाते हैं अंकुश शर्मा। रहमत का किरदार सबको अपने
इर्द-गिर्द मौज़ूद तुर्प के इक्के की याद दिलाता है जो किसी भी गाँव मौहल्ले के लिए
उतना ही अपरिहार्य है जितना कि वह तिरस्कृत भी है। ये सारी परिस्थितिया गजब का
हास्य रचती हैं। उर्दू ज़बान के शब्दों के साथ सभी कलाकारों ने उच्चारण की शुद्धता
का ख्याल रखते हुए यह साबित किया कि वे प्रशिक्षित व पेशेवर अभिनेता हैं।
यह आयोजन एक दिन में कई बाते अलवर रंगकर्म को कह गया -
- ऑडिटोरियम की शुल्क कम करने के लिए प्रशासन से मांग
करना जरुरी तो है लेकिन उसके कम होने के इंतज़ार में बैठे रहना भी ठीक नहीं।
जब तक उस जगह पर कोई गतिविधि नहीं होगी तो प्रशासन को उसकी जरुरत भी समझ नहीं
आएगी।
- यहाँ आयोजन होने से ही इसकी अंदर की खामी पता चली कि
उसकी बनावट में बुनियादी चूक भी हुई हैं। साईक मंच के इतने पीछे चिपका कर
लगाई गई है कि अभिनेता के मूवमेंट के लिए भी पर्याप्त स्थान नहीं। पंखे हैं
नहीं, एसी लगे नहीं। दो घंटे की अवधि दर्शको को गर्मी में तलने के लिए
काफी हैं।
- नाटक को समय पर शुरू करना बहुत जरुरी है। लेकिन यह
उतना ही दुर्लभ भी है। लेकिन कल का शो समय पर शुरू होने के पीछे निसंदेह
देशराज की जिद को ही माना जा सकता है। इसके लिए देशराज साधुवाद के पात्र हैं।
उन्होंने विशिष्ठ अतिथियों को भी आमंत्रित किया लेकिन उनके आदर सत्कार को बरक़रार
रखते हुए उन्होंने दर्शको के समय व रसास्वादन को बाधित नहीं होने दिया।
- इतनी महत्वपूर्ण गतिविधि की अगले दिन किसी अख़बार में
कोई खबर नहीं मिलने पर अच्छा नहीं लगा। प्रिंट मिडिया की यह दूरी समझ में नहीं आई।
- इस रंग अनुभव को रचने में हालाँकि देशराज व प्रदीप अलवर
के रंगकर्मी हैं लेकिन इनके अतिरिक्त पूरे अभिनेता दिल्ली जयपुर व
अहमदाबाद से थे। निःसंदेह इन अभिनेताओं ने अलवर के
रंगकर्म को एक्सीलेंस के मापदंडों से परचित अवश्य करवाया। उम्मीद है भविष्य
में अलवर के रंगकर्मी भी इस ऑडिटोरियम पर शिरकत करते दिखाई देंगे।
सारांशत: यह कहा जा सकता है कि रंग संस्कार थियेटर ग्रुप द्वारा आयोजित "हास्य नाट्य समारोह" के ठहाके की गूंज काफी समय
तक अलवर रंगमंच की फिजा में गूँजेगी। अपनी तमाम मज़बूतियों के बावज़ूद यह कहे बिना
बात ख़त्म नहीं की जा सकती कि यह हास्य का ओवरडोज़ भी था। काश! ये तीनो नाटक, तीन दिन क्रमिकता से मंचित होते तो माहौल और सघन बन सकता था। कुछ अधिक
दर्शक जुटाए जा सकते थे। फिर भी आयोजकों बधाई , दर्शकों को बधाई
!
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दलीप वैरागी
09928986983
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