Why newly joined actor don't like to do backstage
अभी पिछले दिनों थियेटर की एक वेबिनर से जुड़ा था। वहाँ किसी रंगकर्मी ने प्रश्न किया था। थियेटर से नए - नए जुड़ने वाले अभिनेता Backstage क्यों नहीं करना चाहते हैं ? इस प्रश्न का उस समय जो जवाब बना मैंने देने की कोशिश की थी किन्तु मुझे लगा कि इस प्रश्न पर एक रंगमरमी के तौर पर और मंथन करना चाहिए।भाषा की दृष्टि से समस्या का बयान
अगर शब्दावली पर गौर की जाए तो Backstage शब्द में ही दिक्कत है। क्योंकि Back एक तुलनतमक शब्द है जो पीछे होने का आभास कराता है। इसके मतलब को समझने के लिए उस स्थिति को समझना पड़ता है कि किससे पीछे ? .... दरअसल हमारे यहाँ आगे-पीछे .... ऊपर-नीचे... बड़ा-छोटा जैसी शब्दावलियों के शब्दकोशीय अर्थों के अलावा समाजशास्त्रीय पर्याय भी होते हैं और ये समाज शास्त्रीय पर्याय अलग संदर्भों में भी अर्थ ग्रहण को प्रभावित कर जाते है। यह अर्थ भंगिमा हमारे चिंतन और चीजों को देखने के दृष्टिकोण को भी प्रभावित करती हैं। यह तो समस्या को भाषा वैज्ञानिक रूप से देखना हुआ। अब नाट्यशास्त्र के अनुसार देखते हैं।
नाट्यशास्त्र क्या कहता है
नाट्यशास्त्र के अनुसार देखें तो वहाँ अभिनय को Onstage या Backstage में बाँट कर नहीं देखा गया है। यहाँ हर चीज़ सेंटर स्टेज है। कोई आगे-पीछे नहीं, ऊपर-नीचे नहीं। यहाँ नाटक का एक बड़ा छाता है, जिससे भरत मुनि ने विविधरूपा कलाओं को पूरे सम्मान के साथ आच्छादित कर दिया है।
थियेटर से नए जुडने वालों का Backstage की गतिविधियों से न जुड़ पाने का एक और कारण अभिनय को लेकर भ्रांत धारणा है। उनकी नजर में अभिनय का आलंबन केवल मंच के ऊपर आकर चल फिर रहा तथाकथित अभिनेता ही है। उसके अलावा जो भी कार्यव्यापार है वह अभिनय नहीं है। जाने अनजाने में हम तथाकथित वरिष्ठ रंगकर्मी भी उनकी इस धारणा को मजबूत ही करते हैं। दरअसल नाट्यशास्त्र रंगमंच की परिधि में लगभग सभी आयामों को अभिनय के चार रूपों यथा आंगिक, वाचिक, आहार्य तथा सात्विक में ही समेट कर रख देते हैं। फिर यह आगे व पीछे का भाव ही समाप्त हो जाता है। नए शामिल होने वाले अभिनेताओं को शुरू में ही थियेटर की यह वृहद तस्वीर दिखानी चाहिए। केवल अभिनेता ही रंगमंच का केंद्र नहीं जैसा कि दिखाई देता है। यद्यपि Stanislavsky भी अभिनेता को केंद्र में रख कर अपना अभिनय सिद्धान्त रचते हैं लेकिन वे अभिनेता को मंच दूसरी चीजों से इस कदर बांधते हैं कि उसमें वह अलगाव पैदा ही नहीं हो सकता है।
क्या होना चाहिए
जब भी नए अभिनेता थियेटर से जुडते हैं तो वे अपने साथ एक समृद्ध कलात्मक अनुभव या कौशल लेकर आते हैं। निर्देशक उन्हें रिक्त पात्र मान कर नए ज्ञान से स्नान करना शुरू कर देते हैं। जबकि निर्देशक को नए जुडने वाले कलाकार का एक Baseline assessment करना चाहिए कि
वह किस विशेष हुनर को अपने में धारण किए हुए है?
वह हुनर किस स्थिति में है?
उस हुनर को किस दिशा में आगे बढ़ाया जा सकेगा?
रंगमंच पर वह दक्षता किस रूप में अपना योगदान दे सकेगी?
यदि निर्देशक उपरोक्त बातों पर गौर करके आगे बढ़े तो वह उस यक्ष प्रश्न का समाधान पा जाएगा कि "क्यों लोग Backstage नहीं करना चाहते?
यदि नए जुडने वाले कलाकार की रुचियाँ, रुझान व कौशलों को रंगमंच की प्रक्रिया (प्रस्तुति निर्माण ) में स्थान व महत्व मिलेगा तो वे अवश्य जुड़ना चाहेंगे।
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दलीप वैरागी
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