Thursday, October 2, 2014

स्वच्छ भारत अभियान: नेपथ्य की तस्वीरें

दो अक्टूबर गांधी जयंती को “स्वच्छ भारत” अभियान के रूप में मनाया जा रहा है। सरकार का स्पष्ट आदेश है कि 2 अक्तूबर को गाँधी जयंती के अवसर छुट्टी नहीं रहेगी, बल्कि सरकारी दफ्तर खुलेंगे और अधिकारी व कर्मचारी अपने कार्यालय परिसर की सफाई करेंगे। इसका पालन जैसा भी हो लेकिन इससे थोड़ी ख़ुशी हुई  कि सफाई का मुद्दा सरकार के एजेंडा में शामिल तो है।
सुबह से इसका पालन भी होता दिख रहा है। फेसबुक व वाट्सअप पर सुबह से ही तस्वीरे शाया  होने लग पड़ी थीं सरकारी स्कूलों में मास्टर जी  झाड़ू लेकर आँगन बुहारते हुए दिखाई दे रहे हैं। बच्चे भी साथ ही दिखाई दे रहे हैं, मय झाड़ू। मास्टर जी के चेहरे पर एक विजेता भाव है कि उसने सरकार के फरमान को निभा दिया और फोटो इसका प्रमाण है। बच्चों के चेहरे पर एक अजीब मुस्कान है, ख़ुशी व अचरज मिश्रित। उन्हें शायद मोदी जी के अच्छे दिन का मतलब आज सबसे पहले समझ में आया है। बच्चे यह भी जानते हैं की यह अच्छा दिन आज के लिए ही है जो कलेंडर की तिथि के साथ कल बदल जाना है। 
मेरी दिलचस्पी चूँकि स्कूलों में ज्यादा है, इसलिए आँखों के सामने स्कूलों के दृश्य तैर जाते हैं। मेरी आँखे वह देखने की कोशिश कर रही हैं जो तस्वीरों में नहीं आ पा रहा है। तस्वीरों में वही प्रेयर का मैदान व क्लासरूम आ रहे हैं, जो रोज़ बुहारे जाते हैं। चूँकि मैं रंगमंच से भी वास्ता रखता हूँ इसलिए ऑन स्टेज गतिविधि से थोड़ा अंदाजा ऑफ़ स्टेज का भी लगाने की आदत सी है। इस लिए मेरी आँखें इस प्रस्तुति का नेपथ्य विधान  चाह रही है, जो शायद किसी न किसी स्कूल में यूं भी रहा हो-  चलो अपने कैमरे को थोडा पैन करते हैं
दृश्य 1
मैदान में झाड़ू लग जाने के बाद गुरूजी ने एक बार पूरे स्कूल का जायजा लिया होगा। अरे यह क्या! स्कूल का शौचालय तो साफ हुआ ही नहीं। इसे कौन साफ करेगा? फिर मास्टर जी ने इस स्थिति को देख कर ज्ञान का निर्माण किया होगा कि झाड़ू सभी तरह की सफाई का प्रतीक नहीं हो सकता। झाड़ू का प्रतीक वैसे भी अब राजनैतिक चिह्न हो गया है। मास्टर जी ने तुरंत झाड़ू के प्रतीक को विस्तार देते हुए इसमें टॉयलेट ब्रश, बाल्टी मग्गे को भी जोड़ दिया होगा। जब झाड़ू के प्रयोग में मास्टर जी ने अगुआई की है, तो इस नए का श्रेय भी उन्हें ही लेना चाहिए। अत: गुरूजी ने ब्रश उठाया साथ में बच्चों ने भी बाल्टी वगैरह उठा लिए हैं। मास्टर जी टॉयलेट साफ कर रहे है, साथ में यह भी बता रहे हैं कि इस टॉयलेट को रोज़ कैसे साफ रखा जाता है। अफ़सोस इस वक्त कोई तस्वीर लेने वाला नहीं है। भला इस तरह की तस्वीरे फेसबुक पर डाली जा सकती हैं !

दृश्य 2  
गुरूजी ने जब झाड़ू रख कर पसीना पोंछा होगा, साफ आँगन को निहार रहे होंगे और बैठने की इच्छा जाहिर की होगी, तब गुरूजी के लिए कुर्सी लेने भागे चार-पांच लड़कों को रोक दिया होगा और खुद ही कुर्सी उठाकर बैठ गए होंगे साथ ही खुद ही उन्होंने दरी पट्टी को तह लगाकर कुर्सी पर रखा होगा। 

दृश्य 3
गुरूजी विद्यालय के दफ्तर में बैठे होंगे, साथ में स्टाफ के साथी। बच्चे कपों में चाय डालते हैं। चाय की चुस्कियों के साथ ही अभियान की सफलता की चर्चा हो रही होगी। गुरुजी ने चाय के प्याले में बचे दो घूंट को एक लम्बे घूंट में समाप्त करके कप को जमीन पर रखना चाहा। इससे पहले कप जमीन को स्पर्श करे, किसी क्रिकेट खिलाडी की सी फुर्ती दिखाते हुए एक विद्यार्थी ने कप को लपक लिया। जैसे स्लिप पे कैच पकड़ा हो। और सरपट दौड़ पड़ा उसे धोकर लाने के लिए। लेकिन आज गुरूजी ने उसे एक जोर की आवाज़ देकर रोक लिया होगा। बेवकूफ, इधर आओ, हम अपना कप खुद धोकर लाएँगे। सबको अपने कप की सफाई खुद करनी चाहिए। ये क्या ! गुरूजी अपना कप लेकर धोने निकल पड़ते हैं। उनके पीछे पूरा स्टाफ कदमताल करते हुए चल पड़ता होगा। बच्चे इस पहेली के कई मायने निकाल सकते हैं

दृश्य 4
मिड दे मील बन कर तैयार है। बच्चे खा रहे हैं। कुछ बच्चे परोस रहे है। परोसने वाले बच्चे टीचर के सामने भी तस्तरी रखते हैं। गुरूजी जैसे ही तस्तरी में हाथ डालते हैं गर्म भात से उनकी ऊँगली जल जाती। गुरूजी को आज यह ज्ञान हुआ कि अगर गर्म भात में हाथ डालो तो ऊँगली जल जाती है। तुरंत गुरूजी ने इस ज्ञान का जनरलाईजेशन किया कि अगर उनकी ऊँगली जलती है तो बच्चों की भी जलती है। गुरूजी ने अपने अगले दिन की टू डू लिस्ट में यह काम जोड़ा कि बच्चों के लिए चम्मच खरीद कर लाने हैं।

दृश्य 5
गुरूजी लगभग खाना समाप्त करने वाले है। बच्चों की फील्डिंग तैनात है कि कौन सबसे पहले भाग कर तस्तरी धो लाने का सौभाग्य प्राप्त करता है। पर गुरूजी को ज्ञान प्राप्ति हो चुकी है, उन्होने कप वाले ज्ञान के साथ इसे भी जोड़ कर देख लिया है। इन्होने बच्चों की आशा के विपरीत अपनी तस्तरी धोने के लिए नल की और चले गए। गुरुजी को तस्तरी धोने के वक़्त, धोने में काम आने वाली अपरिहार्य चीज़ें याद आई। हालांकि उन्हें मिट्टी में अपने प्लेट रगड़ते बच्चे दिखाई दे रहे थे। लेकिन गुरुजी के मुंह से अचानक निकला कि धोने का साबुन कहाँ है? पोषाहार वाली बाई ने तुरंत बताया कि गुरुजी आप ही याद करके बताइये कि आखिरी बार साबुन किस तारीख को लाए थे। गुरुजी स्मृतियों में जाने को उत्सुक नहीं थे। उन्होंने अपनी टु डू लिस्ट को विस्तार देते हुए उसमे साबुन भी जोड़ दिया। गुरुजी आगे बढ़ जाते हैं। नल के नीचे प्लेटें धो रहा बच्चों का झुंड पीछे हट जाता है। गुरुजी सर्र सर्र बहते नल की धार के नीचे अपनी तस्तरी धो रहे हैं। तस्तरी से टकरा कर सारा पानी जमीन पर नहीं गिरता है कुछ पानी गुरुजी की पतलून को सराबोर कर लेता है। यहाँ गुरुजी को एक और ज्ञान की प्राप्ति होती है जो न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम के विरोधी-सा  जान पड़ता है। इस नियम के मुताबिक सारा पानी जमीन पर ही गिरना चाहिए था, फिर पतलून पे कैसे गिरा। न्यूटन की  हाइपोथीसिस को पलटने के लिए उनके पास पर्याप्त सबूत है, और वो सबूत है गीली पतलून के साथ खड़े उनके जैसे लगभग सौ सवा सौ बच्चे। जो भी हो गुरुजी ने नवीन ज्ञान ने भावनात्मक परिष्कार किया और उसे कर्म में तब्दील करने के लिए अपनी टु डू लिस्ट को एक और आयाम दिया। मेंटीनेंस की मद से गुरुजी बर्तन धोने के लिए सिंक बनवाने के ख्यालों के साथ अपनी धुली सी तस्तरी बच्चों को सोंप देते हैं।

दोस्तो ये वे दृश्य हैं जो आज के दिन हर स्कूल में घटित होने चाहिए। गांधी जी सफाई को इसी रूप में देखते थे और शुरुआत स्वयं से करते थे। लेकिन, अफसोस है कि इन दृश्यों की एक भी तस्वीर न फेसबूक पर  है न वाट्स अप पर। कल के अखबार का बेसबरी से इंतज़ार है। शायद उसमे इन दृश्यों की कोई झलक दिख जाए। अगर एक भी तस्वीर ऐसी मिल जाए तो समझेंगे कि सबके अच्छे दिन आ गए। 
(कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो शेयर ज़रूर करें।  इससे इन्टरनेट पर हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा तथा  मेरे लेखन  को प्रोत्साहन मिलेगा। ) 


दलीप वैरागी 
09928986983 

No comments:

Post a Comment

अलवर में 'पार्क' का मंचन : समानुभूति के स्तर पर दर्शकों को छूता एक नाट्यनुभाव

  रविवार, 13 अगस्त 2023 को हरुमल तोलानी ऑडीटोरियम, अलवर में मानव कौल लिखित तथा युवा रंगकर्मी हितेश जैमन द्वारा निर्देशित नाटक ‘पार्क’ का मंच...