ग्रीष्म
नाट्य उत्सव 2017 अभी समाप्त होकर चुका है। उत्सव की समीक्षा लिखी जानी है। हर
इवेंट की समीक्षा लिखे जाने से पहले मेरे सामने यही बुनियादी सवाल होता है कि
समीक्षा क्यो लिखी जाए। समीक्षा यदि जवाब है तो फिर वह सवाल क्या है? मैं सवाल की तलाश में लग जाता
हूँ। जवाब तो सामने है, सवाल तक पहुँच की कोशिश ही मेरे लिए समीक्षा है। इस ग्रीष्म नाट्य उत्सव में तीन दिनों में
(12-14 मई 2017) चार रंग प्रस्तुतियाँ हुईं
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मैरिज प्रपोज़ल
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आधी रात के बाद
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मरणोपरांत
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उसके इंतज़ार में
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तीसरे
दिन दो प्रस्तुतियाँ हुईं - सुरेन्द्र वर्मा द्वारा लिखित व अंकुश शर्मा द्वारा
निर्देशित लघुनाटक “ मरणोपरांत” तथा प्रदीप कुमार द्वारा लिखित व देशराज मीना
द्वारा निर्देशित नाटक “उसके इंतज़ार में”। मरणोपरांत दो पुरुषों की दास्तां है जो
एक ही महिला को चाहते हैं। एक पति(अंकुश शर्मा) है तो दूसरा प्रेमी(कृश सारेश्वर)
है । जैसा कि नाटक के नाम से ही स्पष्ट है कि महिला के मरणोपरांत पति को पता चलता
है कि उसकी ज़िंदगी में कोई और पुरुष भी है। दोनों पुरुष मिलते हैं यद्यपि दोनों एक
दूसरे को नाकाबिले बर्दाश्त हैं लेकिन वे एक ऐसे सूत्र से जुड़े हुए हैं जो अब नहीं
है। आद्यंत यह नाटक दोनों पात्रों के
माध्यम से रिश्तों में आई रिक्तता को प्रदर्शित करता है। यहाँ दोनों के सवाल हैं।
और सवाल के दो रेस्पोंस है एक पहला जवाब और दूसरा खामोशी। अंकुश शर्मा ने नाटक के
पात्रों की ज़िंदगी की रिक्तता को पकड़ा और नाटक के संवादों के मध्य में जगह-जगह
फैला दिया। इस नाटक में सन्नाटे को
रूपायित करने का बखूबी प्रयोग किया गया है। इस सन्नाटे को और गहरे रंग देने का काम
किया मदन मोहन के संगीत ने। जहां वे नाटक में चंद क्षणो के लिए मंच पर सहयोगी
भूमिका में दिखाई देते है वही वे ज्यादार समय बैक स्टेज में रहकर संवादों के
दरम्यान पसरे सन्नाटे को अपने आलापों के माध्यम से गहरे अर्थ देते हैं।
तीसरे
दिन की अंतिम प्रस्तुति थी प्रदीप कुमार द्वारा लिखित व देशराज मीना द्वारा निर्देशित
नाटक – “उसके इंतज़ार में”। इस नाटक में प्रदीप
कुमार ने स्वयं अभिनय भी किया। जब वे मंच पर आते हैं तो वे नाटक के संवादों के अतिरिक्त
अपनी रंगकर्मियों और समसामयिक मुद्दों पर आशु टिप्पणियों से दर्शकों को अपने साथ बांध
लेते हैं। ऐसा लगता है कि उनका मंच कवि नाटक में भी उनके अवैतनिक सहयोगी के रूप में
आकार खड़ा हो जाता है। प्रदीप में गजब की संप्रेषणीयता है।
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देशराज
की एक खूबी यह रही कि मंच विधान ऐसा रखा जो सभी नाटकों कों सपोर्ट करे। जाहीर है आलेखों
के चयन में उनकी सूजबूझ रही होगी जो कि कबीले तारीफ है। तीसरे दिन तक देशराज मीना टिकटिया
दर्शको की संख्या पहले दिन के अनुपात में बढ़ाने में कामयाब रहे। काश इसी अनुपात में
टिकटिया रंगकर्मी भी बढ़ते। खैर, सभी कों बधाई जो इस आयोजन ने जुड़े, उन्हें भी जो नहीं जुड़े।
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दलीप वैरागी
09928986983
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