जोधपुर के प्रत्येक कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV)की सभी लड़कियों को एक ड्राइंग
बुक तथा एक सेट प्लास्टिक क्रेयोंस कलर के दिये गए है। इसी कड़ी के तहत कल ओसियां
में था। सामग्री कक्षा के अनुसार ही वितरित की जा रही थी। यहाँ देखा जाए तो चार
कमरों में बैठक व्यवस्था है। एक कमरा आठवीं का, दूसरा सातवीं, तीसरा छठी व चौथा
कंडेंस्ड कोर्स का। इस कमरे में वे लड़कियां बैठकर पढ़ती हैं जिनका केजीबीवी में नया
प्रवेश हुआ है, जो हैं तो उपरोक्त कक्षाओं की लेकिन अभी पढ़ना
लिखना सीख रही हैं। शिक्षिकाएँ हर कक्षा में बारी – बारी से सामग्री वितरित कर
रहीं थीं। वितरण के साथ ही मैं लड़कियों को गाइड कर देता। हालांकि चित्रकला विषय
में कोई दाखल नहीं है फिर भी मैं लड़कियों से कह रहा था कि आप इसमें वे चित्र बनाएँ जो आपके मौलिक विचारों और
भावनाओं को अभिव्यक्त करें। यह कैसे होगा यह मैं भी अभी तक नहीं जानता था। यद्यपि
मैं यह जरूर कह रहा था कि आप इसमें मेहँदी के डिज़ाइन, रंगोली, फूल झोंपड़ी इत्यादि स्टीरियोटाइप चित्र न बनाएँ तो बेहतर होगा। यह सारी बातें
मैं इससे पूर्व सात – आठ केजीबीवी में कह चुका हूँ। आज भी पहले आठवीं, सातवीं फिर छठी में
वही बाते दोहराईं तथा लड़कियों ने भी सहमति में गर्दन हिलाई।
किसका चित्र बनाएँ
आखिर में मैं कंडेंस्ड कोर्स के बच्चों के साथ था। इस बार
मैंने इन लड़कियों से पूर्व की बाते नहीं कीं। मैंने लड़कियों से कहा हम चित्र
बनाएँगे लेकिन पहले ठीक से तय कर लें कि क्या बनाएँगे। मैंने कहा, “आप लोग 5 मिनट के लिए बाहर मैदान घूम के
आइये और जो चीज़ आपको पसंद लगे तो आकर इसी चीज़ पर चित्र बना सकते है।” लड़कियों को
मशविरा पसंद आया वे दौड़ कर मैदान में चली गईं। मैं कमरे में बैठा अंदाज़ा लगा रहा
था कि लड़कियों के लिए चित्र बनाना कोई मुश्किल नहीं होगा मगर मैं इस गतिविधि को
क्या मोड देकर पाठ्यचर्या के बिन्दुओं से जोड़ पाऊँगा। यहाँ सोचने की गुंजाइश थी और
फुर्सत भी। दिशा निकल ही आई।
शब्दों के चित्र
लड़कियां लौट कर आ गईं। वो अपनी पेंसिल संभालें उससे पहले मैने उन्हे रोका।
मुझे लगा कि जो जो वस्तु वे देख कर आईं हैं उसके दोनों चित्र अगर एक साथ बनें तो
कैसा रहे।? एक वह
वस्तु जो वे देख कर आयीं है। एक वह चित्र जो वे अभी बनाने वाली हैं। इसके साथ ही
अगर उस वस्तु का शब्द चित्र भी बन जाए तो साक्षारता की जिस प्रक्रिया से ये
लड़कियां गुजर रही हैं वह मजबूत होगी। मैंने लड़कियों से कहा कि आप जो वस्तु देख कर
आई हैं पहले उसे बोर्ड पर लिखवा दो ताकि सब को पता रहे कि कौन लड़की क्या बना रही
है। लड़कियों ने अपने नाम के सामने वस्तुएँ लिखवा दीं। मैंने उन्हें एक तालिका में मोटे-मोटे
अक्षरों में लिख दिया।
लड़की का नाम
|
वस्तु का नाम
|
लड़की का नाम
|
वास्तु का नाम
|
प्रियंका
|
नीम का पेड़
|
ममता
|
कार
|
किरण
|
पिल्ला
|
पूजा
|
हज़ारे का फूल
|
सुमन
|
कुत्ता
|
सुमन
|
पिल्ला
|
सोनिया
|
फिसल पट्टी
|
संगीता
|
सूरज
|
विमला
|
चिड़िया
|
अनीता
|
बादल
|
सोनू
|
चिड़िया
|
मोनिका
|
कार
|
पूजा
|
झूला
|
पुष्पा
|
पीपल का पेड़
|
रंग रेखाएँ और आजमाइश
लिखने के बाद एक बार लड़कियों से वाचन करवाया। इसके बाद उनसे कहा कि अब वे
चित्र बनाना शुरू कर सकती हैं।
पेंसिल छीलना
शुरू .... लाइन खिची ...... रबर से मिटाई .... फिर खिची ..... फिर मिटाई .....
अचानक लड़कियों
ने कहा, “ क्या हम अपनी वस्तु के पास बैठ कर उसे
देख कर चित्र बना सकते है।” इस एक संवाद ने कक्षा कक्ष के दायरों को एक बार फिर
फैला दियाया। ऐसे में न कहने का सवाल ही कहाँ है। एक लड़की आँगन में बैठ कर हज़ारे
को निहार रही है।
एक लड़की
प्रवेश द्वार की सीढ़ियों पर बैठ गई है, सामने से कार साफ दिखाई दे रही है।
दो लड़कियां
पानी के टांके के ऊपर बैठ गईं, वहाँ चिड़ियों को आने जाने में कोई अवरोध नहीं है।
एक रैम्प पर
धूप सेक रहे पिल्ले को देख रही है कि वह काला है? सफ़ेद है? या दोनों है?
कोई सूरज से
नज़र मिलाने की कोशिश कर रही है...
कोई बादलों को
समेटने की कोशिश कर रही है...
आज हर
चिरपरिचित चीज़ एक नए दृष्टिकोण व अजनबीपने से देखी जा रही है।
पानी के टांके
के पास चोंच में पानी भरती हुई चिड़िया जाने कब फुदक कर विमला के कागज पर आ बैठी।
विमला को गोरैया तो चाहिए लेकिन भूरे फीके रंग की नहीं... विमला ने अपनी डब्बी के
सारे रंग छोड़ दिये गोरैया के ऊपर... गौरैया ने उसमे से रंग चुन लिए और विमला के हाथ
से छिटक कर अब सोनू के पन्ने पर जा चिपकी। ये क्या किरण और सुमन का पिल्ला तो बड़ा
नटखट उठ कर भाग गया। किरण और सुमन भी उधर ही चली जिधर गया पिल्ला। पिल्ला वहाँ से
उठ कर फिर बरामदे में.... बरामदे से आँगन में... अब किरण और सुमन को लगा कि
मुश्किल चीज़ का चुनाव कर लिया... सुमन मुझसे आकार बोली, “पिल्ला नहीं बन रहा है” मैंने कहा, “कोई और चीज़ को चुन लो... ” सुमन ने थोड़ी देर सोचा और इस कायनात की सबसे
अचल चीज़ का चुनाव किया, “सर मैं सूरज बनाऊँगी।”
झट से किरण ने
भी पिल्ले से पीछा छुड़ाया और बोली, “सर मैं घंटी बनाऊँगी...”
मोनिका
सीढ़ियों में बैठी अपनी कार व सामने खड़ी
कार का मिलान कर रही है... परसेप्शन सेट कर रही है शायद पेड़ पीछे है या आगे?
कूची की बनी
कलम
थोड़ी देर में
सब कक्षा कक्ष की और लौट चले। अब हमने हिन्दी की शिक्षिका को भी बुलवा लिया था।
कक्षा में आकार प्रस्तुतीकरण की बारी थी। मिलकर एक प्रक्रिया तय की। अब भाषा की और
चलने का समय था। क्योंकि गतिविधि का सुर रोचकता के जिस बिन्दु पर चढ़ गया था वहाँ
से शब्दों से वाक्य बनाने की नीरस कवायद करवाने से मैं बचना चाहता था। यह बहुत आसान था कि चलो अपने
अपने चित्र के बारे में कोई एक बात बोलो। जब कला में बच्चे आकंठ डूबें हो तो
गतिविधि को सौंदर्यशास्त्रीय मौड़ देना भी जरूरी है। लड़कियों से कहा कि प्रत्येक
लड़की अपना चित्र दिखाने के लिए आएगी... चित्र देखने के बाद उसके बारे में बातचीत
करेंगे।
सबसे पहले
किरण अपनी घंटी लेकर आई। घंटी पर बात शुरू ही हुई थी कि एक लड़की बोली-
टन – टन – टन – टन ”
मैंने पूछा कि
और घंटी कहाँ कहाँ होती है ?
लड़कियों ने कहा, “मंदिर में... ”
लड़कियों ने कहा, “मंदिर में... ”
“मंदिर की
घंटी कैसे बजती है?”
“”टन – टन ”
अब अगली लाइन
जोड़िए” मैंने लड़कियो से कहा।
“घंटी बजी
मंदिर की
टन – टन – टन –
टन ”
एक लड़की ने
जोड़ा, “घंटी बोली किरण की... ” अब इसके बाद शायद
उम्मीद टन – टन की थी लेकिन इस बात को लड़कियों ने यूं समाप्त किया।
“घंटी बोली
किरण की
पढ़ेगी तो
बनेगी नंबर वन ”
इस प्रकार यह
तय कर लिया कि हर चित्र पर लड़कियों की मदद से तुकबंदी करनी है। चाहे निरर्थक ही हो
... कोशिश यह थी कि टेक्स्ट में भी लड़कियों की दिलचस्पी उतनी ही बनी रहे जितनी कि
चित्रों में थी। लड़कियों के चित्र दिखाने का सिलसिला चलता रहा और तुकबंदियों से
कविताएं निकलती रही।
मोनिका की तो चलती है
ममता की तो खड़ी है
दोनों की कार बड़ी है
कविता 2
झूला है कितना सुंदर
उस पर झूल रहा है बंदर
उस पर झूल रहा है बंदर
देख के पूजा भागी घर के अंदर
चिड़िया चुग रही है
तितली उड़ रही है
चिड़िया चीं – चीं करती है
तितली फुर - फुर करती है
संगीता का सूरज
गुस्से में है
प्रियंका का सूरज झूम रहा है
सुमन का सूरज चमक रहा है
सुमन का सूरज चमक रहा है
कविता 5
फिसल पट्टी पे सोनिया फिसल गई
कपड़ों पे उसके मिट्टी लग गई
जल्दी से जाकर धोने लग गई
कविता 6
पीपल है छोटा
लकड़ी है बड़ी
पुष्पा चित्र
बनाए खड़ी – खड़ी
सुमन है छोटी
नीम है बड़ा
प्रस्तुतीकरण
कविताएं
बन जाने के पश्चात लड़कियों से कहा गया कि आप अपनी कविताएं ब्लैक बोर्ड से उतार कर
अपनी पेंटिंग के साथ वाले पन्ने पर लिख लें। उनके लिख लेने के पश्चात यह तय किया
गया कि जो भी सृजन हुआ है उसका प्रदर्शन भी किया जाएगा। यूं भी पास के कमरे से
कक्षा 6 की लड़कियां बार-बार झांक रही थी कि आज कंडेंस्ड कोर्स में क्या हो रहा है।
स्कूल की बाकी लड़कियों को भी एक्टिविटी हॉल में बुलाया गया। पूरा स्टाफ भी उपस्थित
हो गया। इसके बाद सभी लड़कियों ने सामने आकार अपने चित्र दिखाए। और चित्र के साथ जो
सबने मिलकर तुकबंदियाँ की वे भी प्रस्तुत की गईं। प्रस्तुति से आशय यह भी कि
लड़कियों ने कविताएं बकायदा पढ़ के सुनाईं, उत्साह और उमंग के साथ। एक बार फिर कक्षा की सीमाओं का अतिक्रमण हुआ।
पहले ज्ञान प्राप्ति के प्रयासों में अबकी बार निर्मित ज्ञान को साझा करने के लिए।
मेरी
पिछले कुछ दिनों से यह मान्यता और भी पुष्ट हुई है कि स्कोलास्टिक और
को-स्कोलास्टिक के बीच बहुत बारीक दीवार
है जो थोड़े से प्रयास में ढह जाती है। और फिर दो तरफा रास्ता बन जाता है। रास्ता
आने जाने का, सीखने – सिखाने का
(कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो शेयर ज़रूर करें। इससे इन्टरनेट पर हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा तथा मेरे लेखन को प्रोत्साहन मिलेगा। )
दलीप वैरागी
09928986983
09928986983
No comments:
Post a Comment