गए का गीत छोड़ कर नए की तलाश कर।
सुर्ख पलाश महकेंगे वसंत की तलाश कर ।
माज़ी तेरा श्वेत है तो श्याम भी होगा कहीं,
व्यतीत के व्यामोह में न मुस्तकबिल की तलाश कर।
चूल्हा जले हर सिम्त उठे रोटी की महक,
बुझी हुई राख में चिंगारियां तलाश कर।
कारवां में रहजनी हुक्काम ही कर जाते हैं,
प्रजातंत्र में सोच कर रहबर की तलाश कर।
चंचल, लोभी, आशिक औ बावला 'बैरागी' मन
इस नए साल में किसी रहगुज़र की तलाश कर।
सुर्ख पलाश महकेंगे वसंत की तलाश कर ।
माज़ी तेरा श्वेत है तो श्याम भी होगा कहीं,
व्यतीत के व्यामोह में न मुस्तकबिल की तलाश कर।
चूल्हा जले हर सिम्त उठे रोटी की महक,
बुझी हुई राख में चिंगारियां तलाश कर।
कारवां में रहजनी हुक्काम ही कर जाते हैं,
प्रजातंत्र में सोच कर रहबर की तलाश कर।
चंचल, लोभी, आशिक औ बावला 'बैरागी' मन
इस नए साल में किसी रहगुज़र की तलाश कर।
नए साल की शुभकामनाओं के साथ
दलीप वैरागी
दलीप वैरागी
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