रंगमंच से अपेक्षा है कि यहां स्वतंत्र चिंतन होता रहना चाहिए । स्वतंत्र चिंतन से एक आशय यह ही है कि रंगमंच पर वैचारिक मंथन के पश्चात ही चीजों को लोगों तक ले जाएँ। आशय यह भी है प्रचलित जुमलों नारों को पहले समझें और उनके निहितार्थ लोगों के सामने भी रखें।
एक जुमला है जिसे रंगमंच के संबंध में हर कोई प्रयोग करता है, "दुनिया एक रंगमंच है और हम उसके किरदार हैं।" आज हम इस जुमले को समझेंगे। जैसे एक वीडियो में हमने "जय रंगकर्म" पर विचार किया था।
यदि आप उस वीडियो को देखना चाहते हैं तो
यहाँ उसका लिंक दिया गया है।
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"दुनिया एक रंगमंच
है" या फिर "जीवन एक रंगमंच है" जैसे वाक्य अक्सर लोगों द्वारा
प्रयोग किए जाते हैं। इसका आशय लोक के संदर्भ में तो सब समझते हैं । हम इसको नाट्य
सिद्धांतों के संदर्भ में देखेंगे। इस संदर्भ में आप अपने रोजमर्रा की जिंदगी को
देखेंगे तो अभिनय के लिए आपको बहुत-सी अंतर्दृष्टि मिलेगी। उदाहरण के तौर पर आप
इसे ऐसे समझें। आप अपने दोस्त के साथ कभी स्कूल में होते है, फिर बाजार में भी कुछ
समय साथ होते हैं और कभी-कभी आप अपने दोस्त के साथ उसके घर भी चले जाते हैं। अब आप
अपने तीनों जगह होने को विश्लेषित कीजिए। वहाँ किए गए व्यवहार को देखिए। एक-सा
रहता है या संदर्भ के साथ बदलता है?
क्या तीनों जगह दोस्त के साथ आपकी भाषा
एक जैसे होती है? तीनों जगह आपका शब्द चयन कैसे बदल जाता है। क्या आपकी अपने मित्र के
साथ बॉडी लैंग्वेज वैसी ही उसके घर पर भी होती है जैसी कि बाजार या रास्ते में थी? आप देखेंगे कि आपका
किरदार तीनों जगह चमत्कारिक रूप से बदल जाता है।
यह अलग-अलग रूप धरने में हम इतने
सिद्धहस्त कैसे हो जाते हैं? जगह, संदर्भ बदलते ही कैसे
अलग भाषा, अलग शब्दावली, अलग टोन, अलग मुहावरे, अलग भंगिमाएं अपना
लेते हैं? अगर इसे हम समझ जाएं तो हमें अपनी नाट्य भूमिका में जाने का बीज यहां
से कुछ हद तक मिल सकता है। दरअसल यह हम इसलिए कुशलता से कर लेते हैं क्योंकि दोस्त
के साथ साहचर्य से हम उसके संदर्भ, पर्यावरण को समझने
लगते हैं। उसके साथ व्यवहार के विभिन्न बिंदु निर्धारित करते चलते हैं। इन्ही
बिंदुओं को मिलाकर विभिन्न एक्शन की एक अविभाज्य रेखा का निर्माण कर लेते हैं। इसी
कार्यशृंखला के साथ दूसरी चीजें जो अचेतन में पहले से विद्यमान हैं, जुड़ती चली जाती हैं।
जैसे भाषा, शब्द, टोन, शारीरिक भंगिमाएं। इसी कार्य श्रृंखला को ही तो स्तनिस्लावस्की The unbroken line of actions कहते हैं। सतानिस्लावस्की कहते हैं आप अपनी भूमिका में तब जा सकेंगे
जब आप उस कार्यशृंखला की अटूट रेखा को बना सकेंगे। उनका कहना है कि स्क्रिप्ट में
दिया गया किरदार अधूरा होता है। उसके जीवन का बहुत छोटा हिस्सा ही आलेख में होता
है जबकि किरदार के जीवन का कैनवास विशाल व विस्तृत है। वो कहते हैं कि आप देखिए कि
आपका किरदार तब क्या करता है जब वह दृश्य में नहीं होता है। यानि स्टेज पर नहीं
होता है। जो दृश्य दिया हुआ है, उस वर्तमान के साथ
अतीत से होते हुए भविष्य तक एक अविभाजित रेखा गुजरती है। यह रेखा वर्तमान में तो
दिखती है लेकिन अतीत व भविष्य में अदृश्य है। इस रेखा को अभिनेता को अपनी किरदार
की समझ के आधार पर कल्पना के सहारे उभरना होता है, अपने मन में। मसलन
उसकी भूमिका का किरदार सभी काम करता है - सोता है, दौड़ता है, तैरता है, नहाता है, खाता है, पीता है। उन सभी
क्रियाओं पर आपको गौर करना होगा कि वह यह सब कैसे करता होगा। तभी आप unbroken line ऑफ एक्शन तैयार कर सकेंगे। जब आपके मन में यह तरतीब बन जाती है तो आप
सहज पात्रानुकूल भूमिका में जाकर अभिनय करने का
इसके अतिरिक्त भी स्तनिस्लावस्की ने और भी तकनीकें बताई हैं उनका अभी किसी और संदर्भ से जिक्र करेंगे।
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