Friday, July 17, 2015

नौजवानों के देश में...

कभी-कभी ऑफिस से घर जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल कर लेता हूँ। या फिर यह कहना चाहिए कि जब भी मौका मिले इस्तेमाल करना चाहिए। इसकी मार्फ़त आप वक़्त से जुड़े रह सकते हैं। देश-दुनिया की साफ-सच्ची तस्वीर ऐसे ही स्थानों पर दिखाई दे जाती है वर्ना इसके लिए आप मीडिया पर कहाँ तक भरोसा करेंगे।
बात दरअसल यूँ है कि आज जैसे ही मैं कार्यालय से निकल कर बस स्टॉप पर आया, दो मिनट के इंतजार पर ही एसी लोफ्लोर सिटी बस आकर रुकी। झट से बस का ऑटोमेटिक दरवाजा खुला और मैं बस में प्रविष्ट हो गया। एसी लोफ्लोर बसें गर्मी के इन दिनों में, आम आदमी को 10-12 रूपए के किराये में खूब राहत देती हैं। बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी लेकिन कोई सीट भी खाली नहीं थी। टिकट लेकर मैं कंडक्टर के पास ही पिछले दरवाज़े से थोड़ा हट कर खड़ा हो गया।
सवारियां चढ़ रही थीं, उतर रहीं थीं, हर स्टॉप पर। दस्तूर यह है कि पिछले दरवाज़े से लोग चढ़ते हैं और अगले दरवाज़े से उतरते हैं। बस के अंदर इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले पर भी यह हिदायत बार-बार आती रहती है, यात्री कृपया पीछे के दरवाज़े से चढ़ें और आगे के दरवाज़े से उतरेंबाकायदा बाईलिंगुअल, हिंदी और अंग्रेजी में। बिलकुल पीछे की सीट्स से उठकर एक अधेड़ व्यक्ति व एक नौजवान पीछे के दरवाज़े पर आकर खड़े हो गए। कंडक्टर जो कि नौजवान ही है, उसने दोनों से कहा कि आप लोग आगे के दरवाज़े से उतरें। अधेड़ व्यक्ति धीरे से अगले दरवाज़े की और सरक गया। अब रह गया वह नौजवान जो दिखने में लग रहा था किसी अभियांत्रिकी कॉलेज से देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के पाठ पढ़ कर आया हो। यह भी हो सकता है कि किसी प्रबंधन संस्थान से मैनेजमेंट के गुर सीख कर लौटा हो। यह भी हो सकता है किसी विश्वविद्यालय की अकादमिक व दार्शनिक चर्चाओं में भाग लेकर आया हो। उसके चेहरे व वेश से यही अंदाज़ा लगाया जा सकता था। वह अभी भी पिछले दरवाज़े पर खड़ा था, अडिग। कंडक्टर ने अपनी हिदायत को दोहराया, "भाई साहब आप अगले दरवाज़े से उतरें।" लड़का बोला, "क्या फर्क पड़ता है, आगे से उतरें या पीछे ?" कंडक्टर ने कहा, " पीछे के दरवाज़े से उतारना सेफ नहीं है, दुर्घटना हो सकती है।" लड़के की मुखाकृति से लग रहा था कि उसने कंडक्टर की बात को तवज्जो नहीं दी और वहीं अविचल खड़ा रहा। कंडक्टर ने फिर कहा, “पता नहीं कि पीछे का दरवाज़ा खुलेगा या नहीं, फिर आपको परेशानी होगी। अगले स्टॉप पर बस ने ब्रेक लगाए आगे का दरवाजा खुला, दो-चार लोग उतर गए। पीछे का दरवाज़ा नहीं खुला। अब, वह लड़का ज़ोर से चिल्लाया, "पीछे का दरवाज़ा खोलो..." दरवाज़ा खुल गया। आवाज इतनी तेज थी कि ड्राईवर न भी खोलता तो शायद अपने आप भी खुल जाता। नौजवान नीचे उतर गया किसी विजेता की तरह। मैं उसे जाते हुए देख रहा हूँ। उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा। चेहरा याद भी नहीं रहा। वह ऐसे कई विजेताओं के चेहरों में से एक हो गया। सिकंदर, हिटलर, चंगेज़ ...  बल्कि अब उसकी पीठ दिखाई दे रही है। पीठ पर एक पिट्ठू बैग दिखाई दे रहा है। ऎसे लगा जैसे उस बैग की चैन खुल गई है, जिसमे से कुछ चीजें बाहर निकल कर साफ दिखाई दे रही हैं। उसकी पीठ पर जो दिखाई दे रहे है। शायद वो हैं - उसकी शिक्षा का वर्तमान, उसकी परवरिश का अतीत या इस देश का मुस्तकबिल? क्या उम्मीद की जा सकती है इस युवक से? क्या इनकी संख्या एक-दो है? आज आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा नौजवानों का है। देश आबादी के इस हिस्से पर गर्व भी कर रहा है और देश को इनसे उम्मीद भी है।
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दलीप वैरागी 
09928986983 


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