यह एक अमेरिकी लोक कथा है।
अजमेर ज़िले के कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय (केजीबीवी), तस्वारिया, केकड़ी, में ‘प्रथम बुक्स की किताबों को उलटते-पलटते यह किताब हाथ में आ
गई। खूबसूरत चित्रों वाली इस किताब को मैं एक बार ही में पढ़ गया। दुबारा भी पढ़ा और दुबारा पढ़ने के साथ ही एक योजना मन में आकार लेने लगी कि इसे केजीबीवी की लड़कियों को कैसे सुनाना है। शिक्षिकाओं के साथ मिल कर सभी लड़कियों को आँगन में इकट्ठा किया और बातचीत शुरू की।
‘‘यह कहानी अमेरिका की है। ...आपने अमेरिका के बारे में सुन रखा है?” मैंने पूर्व जानकारी को जाँचना चाहा,
‘‘हाँ...”
लड़कियों का लगभग समवेत स्वर उभरा।
‘‘कहाँ है अमेरिका?”
लड़कियों ने जवाब दिया - ‘‘नक्शे में, ग्लोब में, किताब में, टीवी में, अखबार में...”
मैं बोला - ‘‘सच ! कहाँ नहीं है अमेरिका !”
कहानी शुरू हुई। मुख्तसर में कहानी कुछ यूं हैं -
चतुर खरगोश ने आग चुराई
एक वक्त था जब इंसान व जानवर हिलमिल कर रहते थे। सर्दियों में खाना खत्म होने पर इंसान जानवरों को खाना दे देते थे लेकिन जानवरों को यह अच्छा नहीं लगता था कि इंसानों को जब ठण्ड लगती है तो वे उनकी कोई मदद नहीं कर पाते थे। उस वक्त लोगों के पास आग नहीं थी। आग तब राक्षसों के पास थी मगर वे उस पर पहरा रखते थे। जानवरों ने इस बारे में कुछ करना चाहा। खरगोश ने नेतृत्व किया और पंखों का एक मुकुट बनाया। फिर उसने राक्षसों के यहाँ जाकर उन्हें बेहद मज़ेदार लतीफ़े सुनाए, जिन्हें सुनकर हँसी के मारे उनके पेट में पड़ गए। जब हँसते-हँसते उनकी आँखों में पानी आने लगा तो खरगोश मुकुट में आग लेकर भागा। सब जानवरों ने बारी-बारी से मुकुट को थाम कर आग इंसानों तक पहुँचाई। इस जद्दोजहद में किसी की पूँछ जल गई, किसी की गर्दन और किसी का सारा शरीर काला पड़ गया...।
कहानी की शुरूआत से ही चर्चा शुरू हो चुकी थी। क्या अब भी जानवर हमसे हिलमिल कर रहते हैं? कौन-कौन से जानवर हमसे आज भी हिलमिल कर रहते हैं? हिलमिल के रहना किसे कहेंगे? वही जो हमारे साथ रहते हैं... साथ तो गाय रहती है, भैंस, बकरी और कुत्ते भी रहते हैं... तो क्या छिपकली भी? नहीं वह नहीं... इसमें वही जानवर आएँगे जो हमारे साथ रहते हैं और हमारे काम भी आते हैं। पालतू जानवर हमसे मिल कर रहते हैं।
बहरहाल, कहानी आगे बढ़ी , कहानी में जानवरों के नाम भी आते रहे। कुछ देशी और कुछ खाँटी अमेरिकी। चित्र भी देखे गए, रेकून तो अपने बन्दर जैसा दिखाई देता है ! कोयोटी तो भेड़िए जैसा है... पीरू तो बिलकुल मुर्गे जैसा है।
कहानी खत्म होने पर लड़कियों से बात की कि इस किताब के आखीर में कहानी में आए उन जीवों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी हुई है जो अमेरिका में रहते हैं; क्या आप अमेरिका के बारे में और कुछ जानकारियाँ लेना चाहती हैं? जैसे वहाँ की जनसंख्या कितनी है, फसलें कौनसी होती हैं, मौसम कैसे होते हैं, इत्यादि। लड़कियों ने एक स्वर में हाँ कहा। मैंने पूछा कि आप यह सब कहाँ से पता करेंगी? उन्होंने कहा यह सब एटलस में मिल जाएगा। इस तरह १०-१२ लड़कियों का एक समूह बन गया जिसे एटलस से उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के बारे में जानकारियाँ एकत्र कर अगले दिन सभी लड़कियों के समक्ष रखना था। लड़कियों का एक और समूह भी इसी काम को करने में उत्साहित दिखाई दिया। इस समूह के पास काम तो वैसा ही था लेकिन चुनौती अलग तरह की थी। उसे एटलस के साथ काम करने के अलावा इकट्ठी की गई जानकारियों पर आधारित सवाल भी पूछने थे। ये सवाल पहले वाले समूह से पूछे जाने वाले थे। इस तरह अब एक चुनौती पहले वाले समूह के सामने भी थी।
कहानी में खरगोश दानवों से आग चुराने के लिए एक तरकीब सोचता है। क्या इस कहानी में आग हासिल करने में नेगोसिएशन यानी बातचीत द्वारा आदान-प्रदान के और भी तरीके हो सकते थे? इस काम को करने के लिए लड़कियों का एक समूह बना जिसे अपना कोई तरीका शामिल करते हुए कहानी को आगे बढ़ाना तय हुआ कि – एक समूह इस कहानी पर नाटक तैयार करेगा।
एक समूह इस कहानी पर कठपुतली प्रदर्शन करेगा।
एक समूह कहानी को चित्रों में प्रदर्शित करेगा।
तब तक छुट्टी का वक्त हो चला था। सभी समूहों को रात को आवासीय समय के दौरान कार्य करना था। समूह आपस में मदद कर सकते थे और ज़रूरत पड़ने पर वार्डन व शिक्षिकाओं की मदद ली जा सकती थी। छुट्टी की घंटी बजी लेकिन किसी को आज उसकी परवाह नहीं थी। सब अपने-अपने काम में लगे हुए थे।
अगले दिन सभी लड़कियाँ तैयार थीं। अपने-अपने काम के प्रदर्शन के लिए पूरे आत्मविश्वास से लबरेज। सभी शिक्षिकाएँ व लड़कियाँ एक हॉल में इकट्ठे हुए। पहला और दूसरा समूह अलग-अलग खड़े हो गए। एक समूह को सवाल पूछने थे और दूसरे को जवाब देने थे। सवाल इस तरह थे –
- अमेरिका के सबसे बड़े बैंक का नाम?
- डाक टिकट संग्रह करने का शौकीन राष्ट्रपति?
- दास प्रथा का अन्त करने वाला राष्ट्रपति?
- विश्व की सबसे बड़ी बस कहाँ है व इसकी लम्बाई क्या है?
- अमेरिका के वन, फसलें, घरेलू पशु?
- अमेरिका की आज़ादी... ओलम्पिक खेलों का बहिष्कार।
- सबसे ज्यादा सल्फर डॉइ ऑक्साइड छो‹डने वाला देश... सबसे ज्यादा प्रदूषण
फैलाने वाला देश... इत्यादि।
धाराप्रवाह सवाल-जवाब सुन कर ऐसा लग रहा था मानों वे इसकी तैयारी में अमेरिका का कोना-कोना झांक आई हैं। सवालों की शुरूआत में ही लग गया था कि उनकी खोजबीन सिर्फ एटलस तक ही सीमित नहीं रही थी। पूछने पर उन्होंने बताया - ‘‘हमने एटलस के अलावा अपनी सामाजिक विज्ञान, भूगोल की किताब व मैडम की जी.के. (जनरल नॉलेज यानी सामान्य ज्ञान) की किताब को भी देखा है।” इसके अलावा उन्होंने कहा - ‘‘दो-तीन बार शिक्षिका से भी मदद ली।” अचानक मेरी समझ में आया कि प्राय: नीरस सी लगने वाली ये पाठ्य पुस्तकें अनायास ही इस गतिविधि से जीवन्त हो उठी थी और उनकी ज़रूरत का हिस्सा बन गर्इं थी। इस दौरान एक बात जो उल्लेखनीय रूप से नज़र आई वह थी कि जब दूसरा समूह जवाब देने में थोड़ी सी देर करता तो शेष बड़े समूह की लड़कियाँ झट से जवाब देतीं। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने कहा - ‘‘आपको यह तैयारी करने को तो नहीं कहा गया था। फिर आप कैसे इतना कुछ बता रही हैं?”
‘‘सर, आपने यह काम तो हमें नहीं दिया था लेकिन कहा था कि हम समूहों की मदद कर सकते हैं, सो हमने मदद करने के लिए ही जानकारियाँ हासिल की।”
वह समूह जिसे कहानी में कुछ और मोड़ सुझाने थे भी तैयार था। इस समूह ने कहानी को लेकर कुछ इस तरह की परिकल्पनाएँ की –
‘‘खरगोश दानवों के पास जाता और कहता कि जंगल के लोग मुझे बहुत अपमानित करते हैं इसलिए मैं उनसे बदला लेना चाहता हूँ। ...इसलिए तु मुझे थोड़ी सी आग दे दो, जिससे मैं उस जंगल को जला दूंगा। इस तरह मेरे और तुम्हारे दुश्मन मर जाएँगे और हम राज करेंगे... इस तरह दानव खरगोश की बातों में आकर आग दे देते।”
‘‘खरगोश जानवरों से कहता - ‘‘मैं जंगल के अच्छे से अच्छे फूलों के ताज बनाकर तुम्हें पहनाऊँगा लेकिन फूलों को तोड़ने के लिए थोड़ी रोशनी दे दो...” दानव खुश होकर रोशनी दे देते।”
‘‘खरगोश उन्हें मांस-मदिरा का लालच देता। वह उनसे कहता ‘‘मैं तुम्हें बेहतरीन मदिरा पिलाऊँगा,” दानव खरगोश की बातों में आ जाते... खरगोश व रेकून की पहले से ही योजना थी कि बारी-बारी से आग को जंगल तक कैसे पहुँचाना है।”
लड़कियों ने इस कहानी में जो विकल्प सुझाए, उस प्रक्रिया में वे जहाँ अपनी कल्पनाशीलता को परवाज़ दे रही थीं वहीं वे सब मिल कर किसी समस्या के हल के विकल्पों पर भी गौर करने के अभ्यासों की शुरूआत कर रही थीं।
एक लड़की ने जब अपने समूह के काम के प्रस्तुतिकरण में जानवरों के साथ जुड़े उनके स्वभाव के बारे में बताना शुरू किया तो वहाँ भी खुली बहस शुरू हो गई।
‘‘कौआ चालाक कैसे होता है ?”
‘‘क्योंकि वह बच्चों से रोटी छीन कर ले जाता है।”
‘‘चालाक नहीं, वह तो क्रूर है...।”
‘‘गधा कैसे मूर्ख है ?”
‘‘उस पर कितना ही लाद दो, वह तो कैसे भी ले जाता है।”
‘‘इस हिसाब से तो वह मेहनती हुआ न....”
‘‘कबूतर चालाक नहीं होता... उसको चबूतरे पर दाना डाल दो, चुपचाप चुग कर उड़ जाता है।”
‘‘ये तो कोई बात नहीं कबूतर तो किसी ज़माने में चिट्ठियाँ ले जाने का काम करते थे।”
लड़कियों की चर्चा में जो तर्क थे, हो सकता है उतने धारदार न हों। लेकिन एक बात पक्की है कि वे पहली बार उन कहानियों पर सवाल उठा रही थीं जिनमें जानवरों पर कुछ विशेष स्वभाव चस्पा कर दिए गए हैं। निस्सन्देह उनकी यह पहल आगे जाकर खुद पर समाज द्वारा थोपी गई पहचानों के मुलम्मे को उतार फेंकने में मदद करेगी। चित्र बनाने वाले समूह ने कहानी पर आधारित बेहद खूबसूरत चित्र बनाए। इसमें किसी ने लाइनें खींच कर स्केच बनाए तो किसी ने रंग भरने शुरू कर दिए। इस प्रकार धीरे-धीरे सामूहिक प्रयास से तस्वीरें अपने रंग में आने लगीं।
नाटक समूह की प्रस्तुति ढीली रह जाने पर लड़कियों ने उसकी अभिव्यक्ति में कमियाँ गिनवानी शुरू कर दीं। ‘‘आपका नाटक पता ही नहीं चला की कब खत्म हो गया।” ‘‘खरगोश द्वारा राक्षसों को बातों में उलझाने वाला सीन साफ़ समझ में नहीं आ रहा था...।” ‘‘आग को लेकर भागने व उसे एक-दूसरे को देने का काम इतनी जल्दी हो गया कि कुछ समझ में ही नहीं आया।”
हम लड़कियों द्वारा नाटक पर की गई समीक्षात्मक टिप्पणियों से हैरान थे। अगर अवसर दिया जाए तो लड़कियाँ किसी भी मुद्दे पर निर्भीकता से अपनी समीक्षात्मक राय दे सकती हैं।
अन्त में, कठपुतली वाले समूह की बारी थी। ये लोग पूरी तरह तैयार थे और तैयारी उनके चेहरे से बेसब्री बन कर झलक रही थी। शुरूआत होने से पहले मैंने उस समूह से माफी मांगी कि आपको थोड़ा कठिन काम दे दिया है, क्योंकि आपके पास जो
पहले से तैयार पपेट्स हैं उनमें जानवरों का एक भी चेहरा नहीं है और इसमें अधिकतर पात्र इंसानों के हैं।
इसके जवाब में लड़कियों ने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा –
‘‘सर, आप चिन्ता मत करो।”
यह वाक्य किसी भी शिक्षक के लिए पुरस्कार स्वरूप ही हो सकता था।
*कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में कहानी शिक्षण के अनुभवों को “खोलती हैं दरवाज़े कहानियाँ” के नाम से संकलित किया है, जिसे संधान ने सेव द चिल्ड्रन के सहयोग से प्रकाशित किया है। यह लेख इस संकलन में “पाठ्यक्रम के साथ व पाठ्यक्रम के आगे ”के शीर्षक से छपा है। इस पुस्तक के लिए चित्रांकन वाग्मी रांगेयराघव ने किया है। उनका बहुत आभार।
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दलीप वैरागी
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