tag:blogger.com,1999:blog-9220727675756447147.post5018435177940656129..comments2023-08-19T19:35:06.089+05:30Comments on कथोपकथन: भाषा शिक्षण और विज्ञानDalip Vairagi दलीप वैरागीhttp://www.blogger.com/profile/15325054635043636582noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-9220727675756447147.post-20928675178903538502011-08-10T12:50:29.175+05:302011-08-10T12:50:29.175+05:30नए पुराने शिक्षक बोर्ड पर पहले वर्णमाला रटाना , फि...नए पुराने शिक्षक बोर्ड पर पहले वर्णमाला रटाना , फिर उनकी एक –एक कि बारहखड़ी बनवाना और यदि इस सारी कवायद में बच्चा कुछ ध्वनियों को पहचान जाता है तो फिर उन ध्वनियों को मिलाकर शब्दों कि घुट्टी बनाकर पहली बार पिलाई जाती है | यह कड़वी डोज जो बच्चा आसानी से गुटक जाता है; वह पढते वक़्त हिज्जे करते, उँगलियों पर बारहखड़ी का हिसाब लगाते थोडा आगे बढ़ जाता है और ताउम्र वर्तनी की गलती करता है |यह कभी नहीं समझ पता कि यह हृस्व और दीर्घ मात्राओं का भाषा में हकीक़त से क्या लेना देना है| बाकी बहुत से बच्चे इस प्रक्रिया में पीछे छूट जाते हैं और पाँचवीं जमात तक पढ़ना नहीं सीख पाते हैं| <br />कई बार यह सोच कर हैरानी होती है कि क्या कारण है कि इतनी कवायद के बाद टीचर पुरानी परिपाटी को बदलना नहीं चाहते हैं ? क्या इसके पीछे परम्परावादी सोच है? कुछ नया न कर पाने कि प्रवृति है? या अज्ञान ? <br /><br /><br />"ऐसा ही कुछ मेरे साथ है शायद में भी उन बच्चो में हु जो अब तक नहीं समझ पाया कि कोनसी मात्रा कहा लगेगी इस को पढकर आज वो दिन याद आ गए जब स्कूल में अध्याद्यापक जी कुछ कहते और घर वाले उनसे झगडने पहुच जाते बेचारे क्या करे हमेशा लाड प्यार में रखा उसकी सजा आज मुझे लगता है में भुगत रहा हु खास आज लोग अध्यापको को दोष न दे तो अच्छा है लेकिन आज भी बच्चो कि गलती नहीं मानते हुए भी अध्यापको कि ही गलती मानते है - कितना सही है कितना गलत सायद में नहीं समाज पा रहा हु माफ़ करना अगर कुछ सही नहीं लिखा हों तो" लेकिन उपरोक्त तथ्य कुछ तो उजागर करते है धन्यवादsanwarianoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9220727675756447147.post-52471303221466782592011-08-09T21:40:43.797+05:302011-08-09T21:40:43.797+05:30मैं भी उलझन में हूँ. बच्चा के जी में डीपीएस में पढ...मैं भी उलझन में हूँ. बच्चा के जी में डीपीएस में पढ़ रहा है और मैं समझ ही नहीं पा रहा कि उसे एबीसी या ककहरा अटपटे तरीके से क्यों पढ़ाया जा रहा है. <br />जब अपनी उलझन श्रीमती जी से कहता हूँ तो वे बोलती हैं कि हमारे ज़माने की शिक्षा वैज्ञानिक नहीं थी. लो जी, अब हम ऐसे ही इतना पढ़ लिख लिए!?निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.com